ऐसे मौसम भी नहीं बदलता
जैसे दोस्त बादल जाते है ॥
गिरिफ़्तार-ए-यारी मे रहता हूँ हरदम,
लोग कहते है ठोकरे खाने पे संभल जाते है ॥
वो जख्म देके भी न हुआ शर्मिंदा,
शायद हम गलत थे के पत्थर भी पिघल जाते है ॥
भरोषा किया जो उनपर खुद से ज्यादा,
वक़्त-ए-गर्दिश मे वो सबसे पहले बदल जाते है ॥
जब भी तन्हा पाते है खुद को दुनिया मे,
मेरे अरमान कागज-कलम पे उतर/निकल जाते है ॥
बस नफरत है “महेश” अपनों के दिलों मे भी अब,
रूह पे है ख़राशें बेहद चल इस दुनिया से निकल जाते है ॥
Teri kalam teri takat hai..
ReplyDeleteKuch log teri adda se nawakif hai
chooni hai ek din bulandi assman ki
sakhi ki bas ab yahi khwahish hai..
Right sakhi ... Thanks for your lovely coment
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