Friday, January 24, 2014

॥ मेरी आँख के उजाले जाने कहाँ गए ॥

मेरी आँख के उजाले जाने कहाँ गए,
थे कुछ मतवाले लोग जाने कहाँ गए ॥

घने अब्र की छाँव मिली बस,
दिन के सूरज के उजाले जाने कहाँ गए ॥

सुख गए मेरी नज़रों के समुंदर,
आब-ए-तल्ख बरसाने वाले जाने कहाँ गए ॥

अजनबी शहर भर को लगे हम,
दिलों से कांटे मगर निकाले कहाँ गए ॥

गम और दर्द से वास्ता रहा दर-बदर,
खुशियो के सिवाले जाने कहाँ गए ॥

जब देखा हमने देखा टूटा आईना,
शब-ए-आईना दिखाने वाले जाने कहाँ गए ॥

अक्सर चुपचाप रहती है सब महफिले,
आवाजाह करने वाले आश्ना जाने कहाँ गए ॥

ये किसने चश्मे-ए-अत्फ़ से देखा “महेश”,
पलट के देख क़ल्ब-ए-ताबिश जाने कहाँ गए ॥ 

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