उनको यू करीब आना नहीं था,
शायद प्यार को आजमाना सही था॥
उसने न पूछा न हमने बताया,
जिक्र करने का कोई बहाना नहीं
था॥
बिस्तर पे खुसबू थी ठंडी सबा
थी,
आँखें खुली तो वीराना यहीं था॥
आँचल पे उसके न कोई दाग आए,
इसलिए दामन उनका बचाना सही था॥
मुहब्बत मे हमने बेवफ़ाई है पाई,
फिर भी यू आँसू हमको बहाना नहीं
था॥
वफा कैसे मिलती “महेश” तुझको,
जब लकीरों मे ये खजाना नहीं
था॥
वफ़ा कैसे मिलती महेश तुझको, जब लकीरों में ये खजाना नहीं था....बहुत खूब...महेश भाई.....अत्यंत सराहनीय.....बरुन
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