Tuesday, December 31, 2013

॥ तिश्नगी जब भी थोड़ी बढ़ा के देखा मैंने ॥

तिश्नगी जब भी थोड़ी बढ़ा के देखा मैंने,
सूख गए सारे समुंदर ये देखा मैंने ॥

अपनी आदतों को अपने अंदर देखा मैंने,
जब भी देखा खुद को निरंतर देखा मैंने ॥

न जाने क्यू बुलन्दियो पर तन्हाई बहुत थी,
इसलिए सख्त मुस्कील मे सिकंदर देखा मैंने ॥

साख से टूट कर गिर गया हूँ मैं,
इसलिए खुद का मुकद्दर देखा मैंने ॥

खुद मे ईमान और धर्म जिनके है,
उनके बाम पर परिंदा देखा मैंने ॥

सच्चाई से बात जब भी सामने आई ,
लोगो को अपने अंदर चीखता देखा मैंने ॥

साहिल और “महेश” का रिश्ता है खूब गज़ब,
के फिर हर तरफ रास्तो मे पत्थर देखा मैंने ॥


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