Tuesday, December 31, 2013

॥ तिश्नगी जब भी थोड़ी बढ़ा के देखा मैंने ॥

तिश्नगी जब भी थोड़ी बढ़ा के देखा मैंने,
सूख गए सारे समुंदर ये देखा मैंने ॥

अपनी आदतों को अपने अंदर देखा मैंने,
जब भी देखा खुद को निरंतर देखा मैंने ॥

न जाने क्यू बुलन्दियो पर तन्हाई बहुत थी,
इसलिए सख्त मुस्कील मे सिकंदर देखा मैंने ॥

साख से टूट कर गिर गया हूँ मैं,
इसलिए खुद का मुकद्दर देखा मैंने ॥

खुद मे ईमान और धर्म जिनके है,
उनके बाम पर परिंदा देखा मैंने ॥

सच्चाई से बात जब भी सामने आई ,
लोगो को अपने अंदर चीखता देखा मैंने ॥

साहिल और “महेश” का रिश्ता है खूब गज़ब,
के फिर हर तरफ रास्तो मे पत्थर देखा मैंने ॥


Monday, December 30, 2013

॥ तेरे हर दर्द को अशआर मे ढाल लूँगा ॥

तेरे हर दर्द को अशआर मे ढाल लूँगा,
इतना हक़ मुझे दे मैं पहचान लूँगा।

गैर मुमकिन होगा तुझसे नजरे चुराना,
ऐसे रोते हुए तुझको संभाल लूँगा॥

शाम कुछ देर सुर्ख रहेगी, “कोई नही”
खून अपना कुछ और देर उबाल लूँगा ॥

लोगो को शब के अँधेरे मे मुहब्बत है रहे,
मैं सुबह के उजाले को अपना मान लूँगा ॥

कट कर रहते-2 हम पर वहसत तारी हो गई,
अब आपकी तन्हाई को अपने अहसासों मे ढाल लूँगा ॥

“महेश” के ख्वाब रेत के महलों की तरह है,
तो क्या हुआ,
अब तूफानों मे भी निशां संभाल लूँगा ॥  


Sunday, December 22, 2013

॥ वस्ल-ए-हक़ीक़त ॥

मैंने रोते-रोते ख्वाब लिखा है,
मैंने अपनों का हिसाब लिखा है,
ज़िंदगी फिर एक जुआ ही है,
मैंने फिर अपने को बर्बाद लिखा है॥

मैंने रोते-रोते ख्वाब लिखा है.....

कीस्ती माझी सब थके हुए है,
सागर-नदिया सब किनारे छूट गए है,
अपने प्यारे से सब रूठ गए है,
मैंने फिर भी दिल को अपने आबाद लिखा है॥

मैंने रोते-रोते ख्वाब लिखा है.....


ज़िंदगी का ये दौर वही है,
आंखो मे अब चोर वही है,
कुमलाए नन्हे पैरो का शोर वही है,
रूठे हुए शब्दो का फिर से हिसाब लिखा है॥

मैंने रोते-रोते ख्वाब लिखा है.....

दिवानेपन का वो मंज़र,
मेरे हाथो मे फिर खंजर,
फिर आंखो से गम गिरता शर-शर,
मैंने फिर गिरते-गिरते अपने को नायाब लिखा है॥

मैंने रोते-रोते ख्वाब लिखा है.....

कलम सहारा बन जाती है,
आँख का तारा बन जाती है,
चलते चलते जब भी रुका हूँ,
“महेश” तेरे चलने का सहारा बन जाती है,
फिर लिखते-लिखते सबको आदाब लिखा है॥


मैंने रोते-रोते ख्वाब लिखा है.....