Thursday, April 28, 2011

||तू ‘सबा’ मेरी और मैं हूँ ‘जिया’ तेरा||

ये उम्र सरीखे ये बागपन तेरा,
खिली है कलियाँ और ये रूखापन मेरा||

लगे है मेले सदियों से,
और फूल खिले ग़मों के,
ये मासूमियत तेरी और बंजारापन मेरा||

हर वक़्त यादो में, हर वक़्त निगाहों में,
ये आफ़ताब सा चेहरा
के हर घडी मुझे तसव्वुर ये तेरा||
(आफ़ताब – सूर्य)

चलती आंधियो में ये एक चिराग है रोशन,
उस पर ये इंतज़ार है,
के कोई 'फानूस' हो मेरा||
(फानूस - कांच का कवर)

कभी तेरे ‘पैकर’ कभी ‘क़बा’ को निहारता हूँ,
के तू ‘सबा’ मेरी और मैं हूँ ‘जिया’ तेरा||
(पैकर - आकृति क़बा- लिबास)
(सबा- ठंडी हवा)

उनकी दुआओं से "उम्र ए जाविदा" "महेश"
के सख्सियत हो तेरी और "ख्याल ए परवाज़" हो मेरा||
(उम्र ए जाविदा- लम्बी जिन्दगी)

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