Tuesday, January 11, 2011

//बाँध के सहरे वतन आई है मेरी ग़ज़ल//

बाँध के सहरे वतन आई है मेरी ग़ज़ल,
सहिदो की याद में फिर बन आई है मेरी ग़ज़ल,

मेरे ख्वाब की पंखुड़ी को ओढ़े ,
घूम रही है पर्वतो पर,
होसले विस्वास वहा से लाई है मेरी ग़ज़ल..

ढूंढती है आँखे फिर अपने वतन को साथियो,
के देश की आँखों का तेज बन आई है मेरी ग़ज़ल,

अपने खून से सीची है सहिदो ने ये जमी,
सहिदो की कुर्बानियों को भूल के भी भूल न पाएगी मेरी ग़ज़ल,

हर तरफ गमगीन आँखों को देखकर,
खुद-ब-खुद आंशुओ में नहाई है मेरी ग़ज़ल,

नफरतो के बोझ से दबे हुए थे सभी रास्ते,
शांति और अमन की नई राह बन आई है मेरी ग़ज़ल,

याद है सहिदो की सहादत के पल,
याद है खुदा की इबादत के पल,
के उन पलों में खुद को खो आई है मेरी ग़ज़ल,

हिंद जय हिंद के नारों की गूँज से समां जो रोशन हो गया,
के "महेश" चला कुछ कदम और हिंद की राहो में खो गया,
के हिंद और जय हिंद के नारों में आज समाई है मेरी ग़ज़ल,
"Mahesh Yadav"

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