बाँध के सहरे वतन आई है मेरी ग़ज़ल,
सहिदो की याद में फिर बन आई है मेरी ग़ज़ल,
मेरे ख्वाब की पंखुड़ी को ओढ़े ,
घूम रही है पर्वतो पर,
होसले विस्वास वहा से लाई है मेरी ग़ज़ल..
ढूंढती है आँखे फिर अपने वतन को साथियो,
के देश की आँखों का तेज बन आई है मेरी ग़ज़ल,
अपने खून से सीची है सहिदो ने ये जमी,
सहिदो की कुर्बानियों को भूल के भी भूल न पाएगी मेरी ग़ज़ल,
हर तरफ गमगीन आँखों को देखकर,
खुद-ब-खुद आंशुओ में नहाई है मेरी ग़ज़ल,
नफरतो के बोझ से दबे हुए थे सभी रास्ते,
शांति और अमन की नई राह बन आई है मेरी ग़ज़ल,
याद है सहिदो की सहादत के पल,
याद है खुदा की इबादत के पल,
के उन पलों में खुद को खो आई है मेरी ग़ज़ल,
हिंद जय हिंद के नारों की गूँज से समां जो रोशन हो गया,
के "महेश" चला कुछ कदम और हिंद की राहो में खो गया,
के हिंद और जय हिंद के नारों में आज समाई है मेरी ग़ज़ल,
"Mahesh Yadav"
Tuesday, January 11, 2011
Thursday, January 6, 2011
//ये बरस भी अब बीत गया//
ये बरस भी अब बीत गया,
मेरे मन को हरा,
समय फिर से जीत गया,
मेरी यादों का घड़ा भर गया,
मन का समुंदर रित गया ॥
खुशिया भी थी दरवाजे पर,
ग़मों ने भी दस्तक दी छाजे पर,
खुशियों को हरा,
गम फिर से जीत गया ॥
ये बरस भी अब बीत गया ॥
उनसे बातें भी दो चार हुई,
फिर मुलाकाते भी कई बार हुई,
बातो और मुलाकातों में,
बन वो मेरा मीत गया ॥
ये बरस भी अब बीत गया ॥
कुछ ख्याल, कुछ बातें,
मैंने मन को अपने समझाया,
गली समाज मोहल्लो में देखा मातम,
फिर रोना मुझको भी आया,
हंसी-खुशी वादियों का, गीत मैंने फिर दोहराया,
के अब धीरे-धीरे मेरी आँखों से बह कर मेरा गीत गया ॥
ये बरस भी अब बीत गया ॥
फिर हक से हाथ बढाया मैंने, दोस्ती अपनी समझाने को,
खुद झूका और सर झुकाया मैंने, अपनी प्रीत जताने को,
विस्वास किया गैरो पर, और अपना समझा ज़माने को,
गलत मेरा विस्वास हुआ, के जमाना अब भूल मेरी प्रीत गया
के "महेश" जमाना फिर से जीत गया ॥
ये बरस भी अब बीत गया,
मेरे मन को हरा, समय फिर से जीत गया,
मेरी यादों का घड़ा भर गया,
मन का समुंदर रित गया ॥
मेरे मन को हरा,
समय फिर से जीत गया,
मेरी यादों का घड़ा भर गया,
मन का समुंदर रित गया ॥
खुशिया भी थी दरवाजे पर,
ग़मों ने भी दस्तक दी छाजे पर,
खुशियों को हरा,
गम फिर से जीत गया ॥
ये बरस भी अब बीत गया ॥
उनसे बातें भी दो चार हुई,
फिर मुलाकाते भी कई बार हुई,
बातो और मुलाकातों में,
बन वो मेरा मीत गया ॥
ये बरस भी अब बीत गया ॥
कुछ ख्याल, कुछ बातें,
मैंने मन को अपने समझाया,
गली समाज मोहल्लो में देखा मातम,
फिर रोना मुझको भी आया,
हंसी-खुशी वादियों का, गीत मैंने फिर दोहराया,
के अब धीरे-धीरे मेरी आँखों से बह कर मेरा गीत गया ॥
ये बरस भी अब बीत गया ॥
फिर हक से हाथ बढाया मैंने, दोस्ती अपनी समझाने को,
खुद झूका और सर झुकाया मैंने, अपनी प्रीत जताने को,
विस्वास किया गैरो पर, और अपना समझा ज़माने को,
गलत मेरा विस्वास हुआ, के जमाना अब भूल मेरी प्रीत गया
के "महेश" जमाना फिर से जीत गया ॥
ये बरस भी अब बीत गया,
मेरे मन को हरा, समय फिर से जीत गया,
मेरी यादों का घड़ा भर गया,
मन का समुंदर रित गया ॥
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