Sunday, December 19, 2010

॥ ये भी एक रिश्ता ॥


के आज अपने रिश्ते का ये मोल हुआ है।
72 टुकडो में मेरा वजूद कटा पड़ा है॥
मेरे सपनो का महल अब टूट गया है।
इसमें मेरा ही नहीं मेरे विस्वास का भी खून हुआ है॥

बनी मैं तेरी दुल्हन॥
छोड़ के आई बाबूल का आँगन॥

हर रिश्ता छोड़ के बाँधा तुझसे बंधन,
तेरे साथ की चुनरी ओढ़ी, उतार के माँ का आँचल॥

तेरा हर गम लिया, दी तुझको हर ख़ुशी,
तुने तोड़ी हर उम्मीद, तोडा हर बंधन॥

अब तो नीरस लगने लगा, हमको ये जीवन,
मेरी वफ़ा के बदले, जो तुने उढ़ा दिया कफ़न॥

के कभी लोट नहीं सकता मेरा बचपन,
मेरे बाबूल का प्यार, माँ का दुलार॥

नहीं लोट सकता मेरे घर का वो आँगन,
याद रहे मेरे निश्चल निष्कपट वफाओ का ये मन॥

बनी मैं तेरी दुल्हन॥ 

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