Friday, December 17, 2010

"फुर्सत के पल"

फुर्सत के पल अब कहा रहे,
जिन्दगी के पाँव जैसे अपने सफ़र पर चल दिए,

कुछ भीगी शामे वो जिन्दगी के गिले पन्ने,
डूबी डूबी सी राते सब यादों में बह गए ,
सब यादों में रह गए..

कुछ किस्से थे अनकहे अनसुलझे
मेरी जिन्दगी के हिस्से थे
सब उम्मीदों के साए में सो गए.

मोहल्ले की रवानिया चली गयी,
वो झूटी - सच्ची कहानिया चली गयी,
के अब रास्ते भी सुने रह गए..

जिनका पता नहीं, दिल वो तलाश रहा है,
कुछ मुझको बता रहा है कुछ खुद को समझा रहा है,
के जो मिलने थे “महेश” वो सारे ज़माने चले गए....

फुर्सत के पल अब कहा रहे,
जिन्दगी के पाँव जैसे अपने सफ़र पर चल दिए,

No comments:

Post a Comment