Tuesday, September 28, 2010

बचपन कभी भुलाया नहीं मैने तुम्हे..

बचपन कभी भुलाया नहीं मैने तुम्हे..
अपनी यादों में कभी भी सुलाया नहीं मैने तुम्हे..

के सायद मैं कभी सोया ही नहीं,
मुझे याद क्यों न हो,स्कूल से भाग कर क्रिकेट खेलने जाना,
फिर पिटाई के डर मास्टर को झूट बोल पेट में दर्द बताना..

`बहुत दिन हुए नहिं देखा दस पैसे का सिक्का...
स्कूल के दरवाज़े पर खड़े होकर चोहान के
गोल्गपे नहीं खाए,

बहुत दिन हुए आंगन के चूल्हे पर हाथ तापे..
याद नहीं आखरी बार कब डरे थे अँधेरे से...
कब झूले थे आखरी बार, पेड़ की डाली पर...
कब छोडा था चाँद का पीछा करना..

याद नहीं, कब कह दिया रहड़ी वाले
भैया की गोला गिरी को अलविदा..!!

कहाँ छुट गए कांच की चूडियों के टुकड़े,
माचिस की डिबिया की तास, चिकने पत्थरों की जागीर..
कब सुना था आखरी बार, स्कूल की घंटी का मीठा सुर...

बहुत दिन हुए नहीं खाई माँ की डाट...
...बसता पटक के भाग गया था खेलने...
नहीं लौटा है अब तक शाम ढलने को है,
सच नहीं लोटा मेरा बचपन जिन्दगी अपने सफ़र पर चलने को है...
के मेरी जिन्दगी के दिन हैं कितने बचे......

बचपन कभी भुलाया नहीं मैने तुम्हे..
अपनी यादों में कभी भी सुलाया नहीं मैने तुम्हे.. (Mahesh Yadav)

Sunday, September 12, 2010

मैंने कभी सोचा नहीं

मैंने कभी सोचा नहीं, के ये दोर भी आयेंगे,
के बदनाम होंगे बददुआये मिलेंगी,
और सिर्फ मेरी झोली में कांटे नज़र आएँगे !!

मैंने तो चाहा था फूलों सा चमन,
नसीबा भी ऐसा जैसे खिलता कमल,
नहीं थी खबर के मिलेंगे यू कफ़न,
के गुस्ताखियों के खेल यू खेले जायेंगे !
के मेरे सपनो के खिलोने सारे मेले में छुट जायेंगे !!

मैंने कभी सोचा नहीं..................

के सायद मैंने अपने आपको पत्थर बना लिया था,
के तकदीर ने लड़ते-२ जीना सिखा दिया था,
तभी तो मेरे जख्म खुले के खुले रह गए,
जो गैरों से मिले वो तो सी गए,
जो अपनों से मिले वो जख्म हरे रह गए,
के मुझे क्या पता था मुक्कदर से इस कदर टकरायेंगे !
के रुस्वाइयां मिलेंगी, और हम अकेले रह जायेंगे !!

मैंने कभी सोचा नहीं..................

मैंने हर गम पीने की कोशिश की,
मैंने हर जख्म सिने की कोशिश की,
मैं हर दोर में करता रहा खुद से बेवफाई,
मगर मेरा विस्वास मेरी सच्चाई काम न आई,
सायद उस खुदा को मंज़ूर न था के मुझे मिलनी ही थी रुसवाई,
के मैं इतना बुरा भी ना था की यू ठुकरा दिए जायेंगे !
के इस नीले गगन के नीचे मेरे लिए तनहाइयों के बादल नज़र आयेंगे !!

मैंने कभी सोचा नहीं.................

जब तक मैं समझ पाता दुनिया के फैसले,
मेरी आँखों पे पड़े थे यारो के काफिले,
विस्वास बहुत था मुझे अपनों पर,
मगर वो भी मुझे गैरों की भीड़ में खड़े मिले,
के सायद अब लोग सोह्रतों से पहचाने जायेंगे !
मुझ जैसे लोग भीड़ में अकेले नज़र आयेंगे !!

मैंने कभी सोचा नहीं..............

Wednesday, September 8, 2010

मेरी मोहब्बत के किस्से जब मेरी आँखों से बयां होने लगे

मेरी मोहब्बत के किस्से जब मेरी आँखों से बयां होने लगे,
बाते हुई चर्चे हुये फिर हर गली में बदनाम हम होने लगे,
सायद जमाने वालो को नागवार गुजरी ये बाते,
के आज वक़्त ये है, हम जुदा है,
के बस यादों के गहरे साए में अपने आप को छुपाने लगे,

के सायद मेरी दीवानगी में कुछ गम छुपे थे,
जो की अब रह-रह के मेरी आँखों से बहने लगे,

लहरों की तरह चंचल मैं उन्मुक्त हवाओ से किनारे दर किनारे चलता रहा,
गलत मेरा विस्वास हुआ किनारे भी अब टूटने लगे,सहारे भी अब छुटने लगे,

के मैं अपनी अक्लमंदी पर विचारो पर भरोसा करता रहा,
के मेरे विचार भी अब मैखाने में दम तोडने लगे,

मुझे विस्वास था उस दुनिया के मालिक पर,
के वक़्त दर वक़्त उस पर से भी विस्वास टूटने लगे,

मुझे गम नहीं की मौत ही मेरी मंजिल सही,
के बस अब तो उनकी यादों में ये सांस भी छुटने लगे,
के अब 'महेश' तेरी जीस्त के सब किनारे टूटने लगे!!