बचपन कभी भुलाया नहीं मैने तुम्हे..
अपनी यादों में कभी भी सुलाया नहीं मैने तुम्हे..
के सायद मैं कभी सोया ही नहीं,
मुझे याद क्यों न हो,स्कूल से भाग कर क्रिकेट खेलने जाना,
फिर पिटाई के डर मास्टर को झूट बोल पेट में दर्द बताना..
`बहुत दिन हुए नहिं देखा दस पैसे का सिक्का...
स्कूल के दरवाज़े पर खड़े होकर चोहान के
गोल्गपे नहीं खाए,
बहुत दिन हुए आंगन के चूल्हे पर हाथ तापे..
याद नहीं आखरी बार कब डरे थे अँधेरे से...
कब झूले थे आखरी बार, पेड़ की डाली पर...
कब छोडा था चाँद का पीछा करना..
याद नहीं, कब कह दिया रहड़ी वाले
भैया की गोला गिरी को अलविदा..!!
कहाँ छुट गए कांच की चूडियों के टुकड़े,
माचिस की डिबिया की तास, चिकने पत्थरों की जागीर..
कब सुना था आखरी बार, स्कूल की घंटी का मीठा सुर...
बहुत दिन हुए नहीं खाई माँ की डाट...
...बसता पटक के भाग गया था खेलने...
नहीं लौटा है अब तक शाम ढलने को है,
सच नहीं लोटा मेरा बचपन जिन्दगी अपने सफ़र पर चलने को है...
के मेरी जिन्दगी के दिन हैं कितने बचे......
बचपन कभी भुलाया नहीं मैने तुम्हे..
अपनी यादों में कभी भी सुलाया नहीं मैने तुम्हे.. (Mahesh Yadav)
अपनी यादों में कभी भी सुलाया नहीं मैने तुम्हे..
के सायद मैं कभी सोया ही नहीं,
मुझे याद क्यों न हो,स्कूल से भाग कर क्रिकेट खेलने जाना,
फिर पिटाई के डर मास्टर को झूट बोल पेट में दर्द बताना..
`बहुत दिन हुए नहिं देखा दस पैसे का सिक्का...
स्कूल के दरवाज़े पर खड़े होकर चोहान के
गोल्गपे नहीं खाए,
बहुत दिन हुए आंगन के चूल्हे पर हाथ तापे..
याद नहीं आखरी बार कब डरे थे अँधेरे से...
कब झूले थे आखरी बार, पेड़ की डाली पर...
कब छोडा था चाँद का पीछा करना..
याद नहीं, कब कह दिया रहड़ी वाले
भैया की गोला गिरी को अलविदा..!!
कहाँ छुट गए कांच की चूडियों के टुकड़े,
माचिस की डिबिया की तास, चिकने पत्थरों की जागीर..
कब सुना था आखरी बार, स्कूल की घंटी का मीठा सुर...
बहुत दिन हुए नहीं खाई माँ की डाट...
...बसता पटक के भाग गया था खेलने...
नहीं लौटा है अब तक शाम ढलने को है,
सच नहीं लोटा मेरा बचपन जिन्दगी अपने सफ़र पर चलने को है...
के मेरी जिन्दगी के दिन हैं कितने बचे......
बचपन कभी भुलाया नहीं मैने तुम्हे..
अपनी यादों में कभी भी सुलाया नहीं मैने तुम्हे.. (Mahesh Yadav)