Tuesday, August 17, 2010

.....कुछ बीते लम्हे.....

कुछ बीते लम्हे जब मुझे याद आते हैं !
तो वो मेरे जहन को सुलगा जाते हैं !!
वक़्त दर-बदर आगे निकलता जाता हैं !
और पीछे किस्से रह जाते हैं !!

के जिन्दगी जैसे उन लम्हों में आज भी कट रही है,
के जैसे रात की चादर, सुबह की धुप से छट रही हैं,
नाउम्मीदी के साए का, फिर वो दोर याद आता है,
के मुझे यकीं ना हो फिर मेरे सपने अधूरे रह जाते हैं!

कुछ बीते लम्हे...............


के मैं चल पड़ता हूँ जाने किस सफ़र पर,
के कभी चलता हूँ रुक जाता हूँ, मैं खुद को रोक नहीं पाता हूँ,
के नाकामी मेरे पीछे भाग रही हो,
के बुजदिली मेरी तरफ झांक रही हो,
के फिर अजब सी बेचैनी के मंज़र मेरे सिने में उतरते जाते हैं!

कुछ बीते लम्हे.................

के जिन्दगी जैसे सपनो का रेला हैं,
और आदमी हर दोर में फिर अकेला है,
मैं फिर इस अकेलपन से घबराता हूँ,
मैं जैसे अपने पथ को भूलता जाता हूँ,
के इस सूनेपन से मेरे साए भी घबराते हैं!!

कुछ बीते लम्हे.....................

मैं खामोसी में सन्नाटे की आहट को जब सुनता हूँ,
फिर अपने जहन में जाने कितने ख्वाबो को मैं बुनता हूँ,
ख्वाबो की हकीक़त यादों में रह जाती है,
पलके उठाते ही फिर रात अंधियारी नज़र आती हैं,
फिर ख्वाबो के सारे किस्से आँखों से बह जाते हैं!!

कुछ बीते लम्हे.....................

अपने भी अब दूर हुए,
फिर सपने भी अब सब चूर हुए,
क्यों अपनों की महफिल में आज इतने मजबूर हुए,
सायद मुझमे ऐसी कोई बात नहीं,
के आज कोई मेरे साथ नहीं,
के आज मेरे अपने भी मुझसे कतराते हैं!!

कुछ बीते लम्हे....................

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