Friday, August 20, 2010

हम किसी की बात का अक्सर गिला करते नहीं

हम किसी की बात का अक्सर गिला करते नहीं,
लोग ही कुछ इस तरह के हैं हया करते नहीं!

खुद नहीं आता किसी के साथ मिलकर बैठना,
और फिर लोगो से कहते वो वफा करते नहीं!

ओ मुसाफिर! गिर गया तो क्या हुआ उठ फिर संभल,
इस कदर मंजिल के दीवाने गिरा करते नहीं!

वो बसर डरते ही रहेंगे अपनी ही परछाई से,
जो कभी दो चार मुस्किल से हुआ करते नहीं!

शौक जिनके दिल में हैं, खुद भी तो एक मंजिल हैं वो,
वो किसी की रहा का कांटा बना करते नहीं!

दोस्तों को नाज़ क्यों न हो "महेश" की दोस्ती पर,
हम तो अपने दुसमन का भी बुरा करते नहीं!!

Tuesday, August 17, 2010

.....कुछ बीते लम्हे.....

कुछ बीते लम्हे जब मुझे याद आते हैं !
तो वो मेरे जहन को सुलगा जाते हैं !!
वक़्त दर-बदर आगे निकलता जाता हैं !
और पीछे किस्से रह जाते हैं !!

के जिन्दगी जैसे उन लम्हों में आज भी कट रही है,
के जैसे रात की चादर, सुबह की धुप से छट रही हैं,
नाउम्मीदी के साए का, फिर वो दोर याद आता है,
के मुझे यकीं ना हो फिर मेरे सपने अधूरे रह जाते हैं!

कुछ बीते लम्हे...............


के मैं चल पड़ता हूँ जाने किस सफ़र पर,
के कभी चलता हूँ रुक जाता हूँ, मैं खुद को रोक नहीं पाता हूँ,
के नाकामी मेरे पीछे भाग रही हो,
के बुजदिली मेरी तरफ झांक रही हो,
के फिर अजब सी बेचैनी के मंज़र मेरे सिने में उतरते जाते हैं!

कुछ बीते लम्हे.................

के जिन्दगी जैसे सपनो का रेला हैं,
और आदमी हर दोर में फिर अकेला है,
मैं फिर इस अकेलपन से घबराता हूँ,
मैं जैसे अपने पथ को भूलता जाता हूँ,
के इस सूनेपन से मेरे साए भी घबराते हैं!!

कुछ बीते लम्हे.....................

मैं खामोसी में सन्नाटे की आहट को जब सुनता हूँ,
फिर अपने जहन में जाने कितने ख्वाबो को मैं बुनता हूँ,
ख्वाबो की हकीक़त यादों में रह जाती है,
पलके उठाते ही फिर रात अंधियारी नज़र आती हैं,
फिर ख्वाबो के सारे किस्से आँखों से बह जाते हैं!!

कुछ बीते लम्हे.....................

अपने भी अब दूर हुए,
फिर सपने भी अब सब चूर हुए,
क्यों अपनों की महफिल में आज इतने मजबूर हुए,
सायद मुझमे ऐसी कोई बात नहीं,
के आज कोई मेरे साथ नहीं,
के आज मेरे अपने भी मुझसे कतराते हैं!!

कुछ बीते लम्हे....................

ये सब मेरी कविता की परछाई हैं

अपने अधरों पर ले मैंने एक कविता नई बनाई हैं,
के टूटे हुए छंद लिए ये सब मेरी कविता की परछाई हैं!!

नहीं खबर किसी को हर जगह आपा धापी छाई है,
यूही बेखबर सब हर स्वर में एक उदासी छाई है,
के बेसुध अंगारों पर एक लहर उमड़ती आई हैं,
के आज गंगा माँ भी कान्हा के घर आंसू बहाने आई हैं........

अपने अधरों पर ले मैंने, एक कविता नई बनायीं हैं,
के टूटे हुए छंद लिए ये सब, मेरी कविता की परछाई हैं!!

गौएँ बे सहारा अब इस धर पर बेहाल हुई,
ये सब देख मेरी आँखों ने बुँदे चंद बरसाई हैं,
औरो की होड़ में अपनी संस्कृति को पीछे छोड़ दिया,
ये क्या कम है आज संस्कृति नंगा बदन देख सरमाई है
देश भक्ति का नाम नहीं अब, मयखानों में धूम मची,
शायद महेश अब हवा पश्चिमी सभ्यता लाई है.............

अपने अधरों पर ले मैंने एक कविता नई बनाई हैं,
के टूटे हुए छंद लिए ये सब मेरी कविता की परछाई हैं!!

अब नेताओ के भासण है और मात्रभूमि अपनों के लहू से नहाई है,
इस मेरे जान वतन को, प्यारे चमन को जाने किसकी नज़र लग आई हैं,
गीता ज्ञान को भूल चुके सब, गन्दी महफ़िलो ने धूम मचाई हैं,
के शायद महेश ये सब समय का बदलाव ही हो,
के मंदिर में भगवान् की मूरत सुनी नज़र जो आई हैं...........

अपने अधरों पर ले मैंने एक कविता नई बनाई हैं,
के टूटे हुए छंद लिए ये सब मेरी कविता की परछाई हैं!!

के मंदीर मस्जिद गुरद्वारे सुने पड़े है सारे,
के शायद धर्म-कर्म में राजनीती जो आड़े आई हैं,
के ये सब लिखते-२ मेरी आँखे भर आई हैं,
व्याकुल मन से मैंने ये कविता नई बनाई हैं,
फिर कही से "हिंद जय हिंद" के नारों की,
एक भीनी सी खुसबू आई है,
के आज फिर सहिदो की याद मुझे अपनी और खीच लाई हैं..............

अपने अधरों पर ले मैंने एक कविता नई बनायीं हैं,
के टूटे हुए छंद लिए ये सब मेरी कविता की परछाई हैं!!

एक सैनिक



एक सैनिक
क्या खोया-क्या पाया जग में, आओ तुम्हे बतलाते हैं,
फिर इस व्याकुल मन से उस सैनिक की गाथा तुम्हे सुनाते हैं!!

घर का आँगन सुना पड़ा है,
घर चूल्हे में आग नहीं, अब धुआं खड़ा है,
हर कोने में सन्नाटा रवां है,
दो आंखे टकटकी लगाये दरवाजे पर झाके है,
के बस अब तो यादों के समंदर आँखों से बह जाते हैं,

एक सैनिक.........

राखी का प्यारा सा बंधन, बहन रहा तुम्हारी देख रही,
ऊँची चोबरी के मुंडयारी पर,बीवी आँखे टेक रही,
माँ के आंसू रुकते नहीं अब, बाप का कंधा टूट गया,
उम्मीदों के साए में अब तो ये सब आस लगाते है.....

एक सैनिक.........

घर आँगन गलियां और नुक्कड़ अब तुम्हे पुकारे है,
कब आओगे-कब लोटोगे, जर-जर मन सुने सारे है,
खाने को घर अनाज नहीं अब , महंगाई बढती जाती है,
पेड़ो के पते सुख गए अब, हवा भी महगाई लाती है,
अपनों को दूर छोड़ के वो अपना फ़र्ज़ निभाते है.....

एक सैनिक.........

चिट्टी में पढ़ हाल तुम्हारा मैंने सासों को रोक लिया,
सहिदो के इस मेले में फिर, एक नाम तुम्हारा जोड़ दिया,
के अब तो अहदे वतन की खुसबू इस चिट्टी से आती हैं,
के तुम्हारे बदन की खुसबू इस चिट्टी से आती हैं,
के मात्रभूमि का कर क़र्ज़ अदा वो स्वर्ग को जाते हैं....

एक सैनिक.........

Friday, August 13, 2010

देश तिरंगा स्वदेश तिरंगा,
मेरी जान तिरंगा, मेरी आन तिरंगा,
और मेरा स्वाभिमान तिरंगा!!




शर्मिंदा हूँ अपने आप से,
मेरा हिन्दुस्तान रो रहा है,
के मैं कुछ न कर सका,
दो शब्द लिखने के सिवा!!

आज देश को आजाद हुए ६४ वर्ष हो चुके है! लेकिन आज भी हम उसी मोड़ पर खड़े है!जब हमारे पूर्वजो ने आजादी में नए जीवन की कामना की थी!
यू कहे तो जीवन निरर्थक है हम खुद अपने ही बनाए चक्र्व्हू मैं फसते जा रहे है! ६४ वर्ष हो गए हमें आजाद हुए! ६४ वर्षो में हमने तर्रकी की मगर उसका कोई फायदा नहीं, इस देश में भ्रस्टाचार इतना फ़ैल चूका है! जैसे “प्रदुषण या महामारी”! नेता सत्ता में आने के लिए एक दुसरे की टाँगे खीचने में लगे रहते हैं! उन्होने सत्ता में आने के लिए राजनीती को अखाड़ा बना रखा हैं! आम आदमी की जिन्दगी दब कर रह गयी है हमारा देश कर्जे में डूबा पड़ा हैं, बहुत से लोगो को दो वक़्त का खाना नसीब नहीं होता! हमारे देश में लगभग ६०% लोग बे रोज़गार हैं, नेता इतनी बड़ी-२ बाते करते हैं उन्होंने करना कुछ नहीं! बस पैसा खाने का धंधा बना रखा हैं बगैर नमक मिर्च के! गरीबी के कारन छोटे -२ बचे सडको पर भीख मांगते फिरते है! गउएँ सडको पर पन्नी-कागज, कूड़ा - करकट खाती डोलती है! उन्हे काटा जाता है कितना बड़ा पाप है, वैसे तो किसी को अधिकार नहीं किसी की हत्या करने का- फिर क्यों ऐसा हो रहा हैं! इन सब पर कब रोक लगेगी!
विभ्हीं देशो ने कितनी तर्रक्की कर ली है हम अभी भी उनसे ५० वर्ष पिछड़े हैं! इसका कारण अपने देश में भ्रस्टाचार का होना!
आजादी के वक़्त सुभाष चन्द्र बोस जी ने कहा था "तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा"
और आज के नेता तो ये छाती हैं तुम मुझे कुर्सी दो मैं तुम्हे गरीबी बेरोजगारी, और भ्रस्ट्ता दूंगा"
ये देश उस पैड की तरह है जो अन्दर से खोकला हो चूका है! नौकरियों के लिए घूस-दलाली छिक कर होती हैं! जो अच्छा अनुभवी है जिसके पास पैसे नहीं हैं वह एग्जाम दे-दे कर मर जाएगा! होगा कुछ नहीं, अगर कोई उस सिस्टम के खिलाफ कोई आवाज उठाता है तो उसका मुह बंद कर दिया जाता हैं या तो पैसा या घूसा!!
हम बड़े गर्व से कहते हैं "मेरा भारत महान" मगर भैया अभी भी १०० में से निनाय्न्बे बेईमान" इस देश में ७०% नोजवान, यानी ३५ वर्ष की आयु से कम के लोग! अगर उनसे पुचा जाए की आपका लक्ष्य क्या है तो कोई कहता है डॉक्टर बनुगा, कोई कहता है इंजिनियर, सबकी आपनी अपनी सोच है कोई ये नहीं कहता की कोई ये नहीं कहता की मैं देश के लिए जिऊंगा और अच्छा नागरिक बनुगा!
इसी लिए तो देश इतना पिछड़ा हुआ! काश फिर से इस धरती पर वो राजगुरु, सुखदेव भक्तसिंग आ जाए! जो देश के लिए और देश के लिए मर मिटे!!! सुभाष चन्द्र जैसे नेता जो देश की आन के लिए कुर्बान हो गए! काश वो आज भी हमारे साथ होते, उन्हे याद करके आँखों में प्यार का सागर उमड़ आता हैं!
आज हर इंसान अपना दाव खेलने में लगा है सोचता नही की वक़्त की जो मार लग रही है
उसका अंजाम क्या होगा! अभी कुछ दिनों की बात है बोम्बे में ब्लास्ट हुए इसी तरह के ब्लास्ट
देश के जाने कितने कोने में हो चुके है! सैंकड़ो की जाने जा चुकी है सैंकड़ो अपनी जिन्दगी और मौत के बिच लड़ रहे हैं! "एक तो महगाई की मार, ऊपर से आतंकियों के हथियार"
“हम कहते है वन्दे मातरम पकिस्तान जैसा देश कहता है वन्दे बेशरम, बे करम”
जब तक हम एक जूट नहीं होंगे सभी को एक सामान नहीं समझेंगे तब तक कुछ नहीं होगा!
हमे एक होना होगा एकता में सबसे बड़ी सकती है! जात-पात भेद-भाव के खोखली नीतियों से ऊपर उठकर आगे आना होगा!
अगर इसी तरह चलता रहा तो पाकिस्तान जैसा देश अपने देश में इतनी गंद भर देगा! अब वक़्त भासण देने का नहीं एक जुट होने का है! हम अब भी होंस में नहीं आये तो कब ?? अब जवाब बातो से नहीं, लातों से देना होगा!


“दम घुट जाएगा ,
वक़्त लोट के फिर नहीं आएगा,
के तू संभल अ हिन्दुस्तान के नौजवान,
अब तो सीना तान के तू सामने आ,
के तेरे हाथो से फिर भारत माँ का दीप जल जाएगा,
अमन और शांति का तिरंगा फिर फराया जाएगा!!!”

सुनिए घर घर की कहानी,
महेश की जुबानी,
इस देश में है कितनी बेईमानी,
दोस्ती की बात न करो,
करते है यहाँ सब दुश्मनी,
फिर भी कहते है हम हिन्दुस्तानी!!
नेता कहते है सुनो मेरी जुबानी,
मैं हु आप सब का सैलानी,
मुझे बनाओ अपना नेता,
मैं हूँ तुम्हारा भाई हिन्दुस्तानी,
बनते ही नेता करते है अपनी मनमानी!!

इस लिए तो मेरा जमीर रो रहा है,
मेरे वतन की बस्तियों में गलत कुछ और हो रहा है,
बदलना होगा सबको,वर्ना लुट जाएगा सब कुछ,
के आज अपना मुक्कदर अपने हाथो खुद ही रो रहा है!!

इस देश में भ्रस्ट्ता जड़ से मिटानी होगी,
इस देश में आजादी फिर से लानी होगी,
भ्रसटाचारी को बताना होगा,
अब नहीं चलेगी तुम्हारी मन मानी,
जाग उठा हर हिन्दुस्तानी,
हम लायेंगे अमन और शान्ति,
अब नहीं चलेगी कोई बेईमानी,
बढ़ चुकी दिल में बेचैनी,
अब नहीं रही किसी से दुश्मनी,
कर ली है हमने सब से दोस्ती,
इस लिए हम गर्व से कहते है,
हम है हिन्दुस्तानी,
यह है मेरे देश की कहानी
महेश की जुबानी....
• अगर ये संकल्प मिलकर करे तो कुछ भी नामुमकिन नहीं.......

वक़्त भी लाख लगाएगा पहरा,
तेरी धडकनों को रोकेगा ना होने देगा सवेरा,
मगर तू होंसला न हारना,
जब तक मंजिल न मिले तुझे,
क्योंकि उस दिन वक़्त भी गुलाम बन जाएगा तेरा!!

कुछ पाना है तो साथ मिलकर चलो,
कुछ बोलने ने से पहले कदम उठ जाएगा तेरा,
जब निकल पड़ेंगे एक साथ,
न होगी मुस्किल कोई,
के फिर होगी तेरी हर शाम,
होगा हर सवेरा तेरा!!!!
जय हिंद, जय भारत....

Wednesday, August 11, 2010

..मेरी हर नब्ज़ हर सांस मैं रवां जिन्दगी का काफिला....

मेरी हर नब्ज़ हर सांस मैं रवां जिन्दगी का काफिला!
के दिल की इस गली से चला फिर लिखने का सिलसिला,
के यू तो मंजिले बहुत थी मगर कारवां न मिला,
की एक खुशी की तलाश में फिर किया लिखने का फैसला!

अपनों को समझ पाने की खता है,
या अपनों को रुलाने की ख़ता है,
सच कहू अब इस दिल मैं बस धुआ ही धुआं है!!

किया क्या मैने गुनाह है,
जो दर्द मुझको मिला है,
अब न कोई सिकवा गिला है,
जो भी मिला अपनों से मिला है!!

जर्रा जर्रा मजहब में बटा है,
ना कोई मंजिल है मेरी
ना कोई सपना है,
जिन्दगी ने भी जैसे रास्ता अपना चुन लिया है!!!

Thursday, August 5, 2010

हम रहे या ना रहे, वतन मेरा जिन्दा रहे!!

वतन ही वतन अब राहों में हैं,
वतन ही वतन अब निगाहों में हैं,
वतन के सिवा और कुछ भी नहीं,
के वतन की ही हम बाहों में हैं,
के कलम ने आगाज़ किया की लिख ले कुछ ऐसा,
के आज फिर हम खुदा की पनाहों में हैं!!

हम रहे या ना रहे,
वतन मेरा जिन्दा रहे!!

कुछ हवा यू चली और बोली,
की वक़्त है फिर वही ,
आज़ादी की सांस लेता,
आसमा और जमीं,
देख नन्हे पैरों में जंजीरे नहीं,
ढलते पथ की जो धुल थी वो छट चली,
अंधियारे में चले थे लेके दिल में विस्वास ये,
एक दिन तो बदलेगा आसमा,
होगी अपनी सारी ये जमी,
के खुद ब खुद निकलने लगी बुझे दिए से रौशनी,
के फिर वही है आसमा फिर वही है जमीं,
वक़्त के हाथो ना लुटने देंगे तोड़ेंगे ज़ंजीरो को,
वतन के लिए बदल देंगे तकदीरों को,
के जब तक सांस जिस्म में है,
वतन के लिए लड़ते रहे!!

हम रहे या ना रहे,
वतन मेरा जिन्दा रहे........

ये जो जिन्दगी है एक पहेली है

सोचू तो क्या है ये कलम,
तिनका-२ टुकड़ा-२ जोड़कर
लिख देती है खुसी और गम,
पिरो देती है आँखों में अश्रुओं के मोती ,
बना के अपना सनम ॥

ये जो जिन्दगी है एक पहेली है,
कभी साँसों की दुश्मन कभी सहेली है ॥

साँसों का क्या ये आनी और जानी है,
आज बचपन कल की ये जवानी है,
साथ छोड़ के जाते है जब लोग दिलवाले,
बचना क्या है फिर जाने वालों की याद आनी है ॥

ये जो जिन्दगी है एक पहेली है ॥


दुनिया को छोड़ कर जाने वाले,
रोये हम और ज़माने वाले,
ये है उम्मीद के तू वापस आ जाए,
वर्ना यादों के सहारे आँखों में पानी है ॥

ये जो जिन्दगी है एक पहेली है ॥


सुना सुना है ये जहाँ अब,
के सुनी दुनिया लगे नीरस जीवन,
पल में टूटे सब रिश्ते टुटा ये मन,
एक ना एक दिन तो जिस्म से जान जुदा होनी है ॥

ये जो जिन्दगी है एक पहेली है ॥ 

तन्हा बैठे हुए कुछ ख्याल हो आया

तन्हा बैठे हुए कुछ ख्याल हो आया,
याद किया कुछ बीते लम्हों को,
के आँखों मैं नीर उतर आया,
कलम चलने लगी यादों के साथ,
के फिर किसी का इंतज़ार हो आया!

मेरा बचपन बीता के जवानी भी चली गयी,
तेरी रहमत से सनम ये जिंदगानी भी चली गयी,
लोग अक्सर गिला करते हैं उन बातों का,
जिसमें रस्में कसमें और बेमानी भी चली गयी!!

शाम होते होते इंतजार हो आया उनका ,
याद करते-करते ये रूहानी भी चली गयी,
के दिल तो सीसा है इसको टूट जाने दे,
जो ज़ख़्म लगने थे वो परेशानी भी चली गयी!!

के रिश्तों की बात कहाँ आज हम है ख्फां
के सनम तेरे रंजों गम मैं ये कहानी भी चली गयी,
अक्ष आँखों मैं लेके याद करते है उन्हें ,
के रुठते मानते धीरे-२ ये दीवानी भी चली गयी!!!!