Monday, December 20, 2010

एक और कदम

मैं होता अगर अर्जुन जैसा वीर धनुर्धर,
तो करता समाज के कोरवो का वध हर छण पर,
मैं ना देखता मोह ममता की दिवार,
मैं सिर्फ करता देश के ध्र्त्रास्टो पर तीक्षण वार ॥

के अब तो हर महा सभा द्रोपती चिर हरण की कहानी घडती है,
इस अबला नारी पर जाने कैसे-कैसे कसीदे कसती है,
अब एक नहीं बहुत से ध्र्त्रास्टो ने गद्दी थामी है,
और इस लुटती संस्कृति को देख सारी सभा अनजानी है,
ये देख लगी है आग मेरे सिने में,
सुलगे है कई मोन समुन्द्र दिल कोने में,
के अब मुझे विस्वास नहीं इन सिखंडीयो की बस्ती पर ॥

मैं होता अगर अर्जुन जैसा वीर धनुर्धर ॥

हर गली हर नुक्कड़ पर हवस के कीचक बैठे है,
इस नारी की लाज बचाने को कोई भीम सा बलवान नहीं,
जी करता है तान बजा दू व्र्हंला बनकर सत्ताधारी बाजारों में,
आग लगा दू लोकतंत्र के गलियारों में,
अब अंत कहा रह जाएगा इन राक्षसों का इस धर पर,
के अब फिर लड़ेंगे कोरव पांडव कुरुक्षेत्र के रण पर ॥

मैं होता अगर अर्जुन जैसा वीर धनुर्धर ॥

के कुछ सरारती तत्वों ने इस समाज को गन्दा बनाया है,
हर जगह,हर घर में डर का मातम छाया है,
के हर हद पार कर इन गुंडों ने कहर बरपाया है,
ये सब देख मैंने अपने जिगर को थाम लिया,
के प्रण-प्रत्य ये विस्वास मेरा अब डग-मग होने न पायेगा,
अब जियेंगे वो गुंडे भी इस धर पर डर-डर कर,
हर मोल चुकायेंगे "महेश" वो अपने लहू से मर-मर कर ॥

मैं होता अगर अर्जुन जैसा वीर धनुर्धर ॥ 

Sunday, December 19, 2010

॥ ये भी एक रिश्ता ॥


के आज अपने रिश्ते का ये मोल हुआ है।
72 टुकडो में मेरा वजूद कटा पड़ा है॥
मेरे सपनो का महल अब टूट गया है।
इसमें मेरा ही नहीं मेरे विस्वास का भी खून हुआ है॥

बनी मैं तेरी दुल्हन॥
छोड़ के आई बाबूल का आँगन॥

हर रिश्ता छोड़ के बाँधा तुझसे बंधन,
तेरे साथ की चुनरी ओढ़ी, उतार के माँ का आँचल॥

तेरा हर गम लिया, दी तुझको हर ख़ुशी,
तुने तोड़ी हर उम्मीद, तोडा हर बंधन॥

अब तो नीरस लगने लगा, हमको ये जीवन,
मेरी वफ़ा के बदले, जो तुने उढ़ा दिया कफ़न॥

के कभी लोट नहीं सकता मेरा बचपन,
मेरे बाबूल का प्यार, माँ का दुलार॥

नहीं लोट सकता मेरे घर का वो आँगन,
याद रहे मेरे निश्चल निष्कपट वफाओ का ये मन॥

बनी मैं तेरी दुल्हन॥ 

Friday, December 17, 2010

"फुर्सत के पल"

फुर्सत के पल अब कहा रहे,
जिन्दगी के पाँव जैसे अपने सफ़र पर चल दिए,

कुछ भीगी शामे वो जिन्दगी के गिले पन्ने,
डूबी डूबी सी राते सब यादों में बह गए ,
सब यादों में रह गए..

कुछ किस्से थे अनकहे अनसुलझे
मेरी जिन्दगी के हिस्से थे
सब उम्मीदों के साए में सो गए.

मोहल्ले की रवानिया चली गयी,
वो झूटी - सच्ची कहानिया चली गयी,
के अब रास्ते भी सुने रह गए..

जिनका पता नहीं, दिल वो तलाश रहा है,
कुछ मुझको बता रहा है कुछ खुद को समझा रहा है,
के जो मिलने थे “महेश” वो सारे ज़माने चले गए....

फुर्सत के पल अब कहा रहे,
जिन्दगी के पाँव जैसे अपने सफ़र पर चल दिए,

Thursday, December 16, 2010

“मेरा अंधविश्वास”

सपनो के पीछे मैं भागता हूँ,रातो को मैं जागता हूँ,
अपनों से मैं पूछता हूँ, खुद को मैं ढूंढ़ता हूँ,
फिर अहसास क्या मुझे मैं खुद को जानता हूँ ॥

उम्मीदों पे विस्वास का मैं समुंदर बहा रहा हूँ,
आज अपने दिल को मैं कुछ ऐसे समझा रहा हूँ,
मुझे रोकती है मोज़े मैं बहा जा रहा हूँ,
फिर लहरों के साथ अपना गम छुपा रहा हूँ॥

फुहारे थी जो सावन की
सभी नजराने थे रंगी बहारो के,
के अब उन बहारों में मैं डूबता जा रहा हूँ॥

उम्मीदे खोक्लेपन से मेरे दामन को झ्न्झोरती थी,
नाकामी की धुल हर वक़्त आँखों में दोड़ती थी,
की अब इस नाकामी की धुल को अपने अश्रु बना रहा हूँ,
मैं देखता हूँ लगा है खुशियों का मेला फिर कही,
न जाने क्यों फिर इन खुशियों से अपना दामन छुड़ा रहा हूँ॥

के फिर कही मेरी नज़र धुंधला रही थी,
सायद मुझे कुछ समझा रही थी,
पर वक़्त की पड़ी धुल मुझे कुछ न दिखा रही थी,
मैने लोटना चाहा अपने साए के साथ,
मगर अब मेरी नज़रे ही मेरे साए से दामन छुड़ा रही थी,
मैने लाख कोशिश की संभलने की ,
फिर भी मैं हर बार गिरता रहा हूँ॥

यू तो "महेश" मंजिले तलाशने को रास्ते बहुत थे,
मगर बेवजह कितने रास्तों पे चलता रहा हूँ॥ 

"ग़ज़ल ए मुहब्बत"

……लानत है उस मरहूम जवानी पर,
जिसमे न रूह का कुछ पता,
न जिस्म की कोई खबर……

ग़ज़ल ए मुहब्बत पर हमने बनाई मगर,
किस्से जफ़ाओ के नाम मेरी वफाओ के,
सुने जिसने भी इधर-उधर,
चर्चे खयालो के बाते सवालो के,
सुनके सब गए मुकर !!

जिन्दगी मेरी तेरे लिए एक खुली किताब है,
चहरा मेरा तेरे अक्स के लिए एक अजाब है,
हर लम्हा मेरी धड़कन याद करती है तुझे,
तुही मेरी जिन्दगी तुही मेरी हर साँस है,
मैंने बहुत आवाजे दी तुम्हे अपने सिने पे नाम लिख-२ कर,
मगर तुम्हे मुझसे जयादा थी ज़माने वालो की फिकर !!

ग़ज़ल ए मुहब्बत पर हमने बनाई मगर....

पलकों के झरोको में मैने तुम्हे बैठाया,
अपनी उम्मीदों अपने सपनो में मैने तुम्हे सजाया,
हर बार मैं करता रहा खुद से बेवफाई,
मगर मेरी वफ़ा कुछ काम न आई,
सायद ये मुझे मालूम था की होनी ही है रुसवाई,
के बरस रहा है अब ग़मों का कहर,
के मेरा दर्द निकल रहा है आँखों से रह-रह कर !!

ग़ज़ल ए मुहब्बत पर हमने बनाई मगर........

मेरा दुःख कैसा एक मंज़र,
आगे तूफ़ान पीछे सागर,
लहर उठे तो मिल जाए नदिया,
सिमट उठे तो गिर जाए अम्बर,
टूट गए सब सपने गए हम बिखर !!

ग़ज़ल ए मुहब्बत पर हमने बनाई मगर........

Monday, December 13, 2010

आखरी रास्ता

यू तो ठहर जाने को मंजिले बहुत थी,
मगर जो रास्ते मंजिलों की तरफ चले वो धुंधला गए,
के वक़्त और बर्बादियों के खंजर मेरे सीने में चुभा गए ॥

के सायद ये नजरो का फेर था की वक़्त दोहरा रहा था कहानिया,
के मैंने जिस तरफ देखा उस तरफ था धुंआ ही धुंआ ॥

के सायद तन्हा रास्तों से डर गया था,
अपने वजूद और जीस्त के लिए कितना मर गया था,
वक़्त की मार लगनी ही थी आखिर,
इसलिए अपनी तन्हाइयों में घिर गया था ॥

जैसे गम मेरे पीछे भाग रहा हो,
के हर घडी मेरे सब्र का अरज माप रहा हो,
मेरी रगों में दोड़ता खून जैसे जम गया हो,
मेरी साँसों का घेरा जैसे थम गया हो ॥

जब आइना रात के सन्नाटे में सच बताने लगा,
 जब मेरी रूह को इबादत दिख:ने लगा,
के जब डर लगने लगा मुझे अपनी परछाइयों से,
तो मेरा वजूद मुझे खुदा के करीब ले जाने लगा ॥

के "महेश" अब जीस्त के सब फलसफे अँधेरे में दम तोड़ गए,
और फिर मुझे जिस्म और जीस्त के बिच अकेला छोड़ गए ॥ 

आखिर कब तक



ये बरबादियो के मंज़र कब तक दोहराए जायेंगे,
नफरत के काले बादल कब तक वतन पर छाएंगे,
कब तक बहेगी लहू की ये नदियाँ,
आखिर कब तक ये नफरत के खेल-खेले जायेंगे,
जाने कब धर्म-कर्म से परे हटकर इंसां पहचाने जायेंगे.....

ये बरबादियो के मंज़र कब तक दोहराए जायेंगे…..

कुछ चहरे इस कदर धुंधला गए,
हर घडी मात्रभूमि को रुला गए,
अपनों से बैर रखकर क्या जीत पायेंगे वो खुशी,
जो ग़मों के ढेर में अपनों को बिठा गए,
इस जमीं की जदों-जहत ने इंसां को निचा बना दिया,
न जाने कब इन दिलों से ये कांटे निकाले जायेंगे,

ये बरबादियो के मंज़र कब तक दोहराए जायेंगे……

तोड़ी थी हमने २०० साल पुरानी जंजीरे,
सायद धुंधला गयी है अब वो तस्वीरे,
कुछ अपने ही इस कदर लूट रहे है वतन को,
सर उठा के देखो क्या बना दिया चमन को,
इस भारत माँ को कब तक रुलाओगे तुम,
न जाने कब होंस में आओगे तुम,
अब डर लग रहा है अपने गुलशन चमन को देखकर,
मैने जब पुछा खुदी में खुद को रोककर,
क्या सहिदों के देखे सपने यूही टूट जायेंगे,
आने वाली नसल को हम क्या वतन दिखायेंगे,

ये बरबादियो के मंज़र कब तक दोहराए जायेंगे……

अ नफरत करने वालो नफरत से वतन नहीं है,
जंगों से बाज आओ शांति और अमन सही है,
इंसानियत को अब इतना भी न गिराओ,
ये वतन है हमारा इस पर रहम खाओ,
सहिदो की कुर्बानियों को यू न सर्मिन्दा करो तुम,
अमन और शांति से ही वतन है इसी की सहारे जियो तुम,
नहीं तो "महेश" फूल खिलने से पहले ही मुरझा जायेंगे,
ग़ुरबत के ये पल फिर न लोट के आयेंगे..............

ये बरबादियो के मंज़र कब तक दोहराए जायेंगे………….

Thursday, November 18, 2010

अब और क्या देखना बाकी है


अब और क्या देखना बाकी है..क्या कभी ये मोन संस्कृति भी जागी है...
ये कटा हुआ सव अपने धर्म का रोता दर्शन है...क्या इन हत्यारों में अभी भी कुछ शर्म बाकी है...

अपनी आजादी का मोल आज हमने ये पाया है...
की गैरो की भीड़ में आज अपनों ने लहू बहाया है,
इस पवित्र गो माता को सड़क बीच कटवाया है,
क्या यही आजादी का मतलब है, और व्यर्थ सहिदों की कुर्बानी है....

अब और क्या देखना बाकी है.......

कबतक यू गो माता काटी जायेगी,
कब तक ये पाप की आंधी गो माता पर छाएगी,
कब तक यू गो माता का लहू बहाया जाएगा..
यही हुआ तो इस धरती का अंत समीप आ जाएगा.
गो माता हिन्दुस्तानी आँखों का निर्मल पानी है,
इसकी लाज हमें बचानी है..

अब और क्या देखना बाकी है...

के मानव अब सायद मानवीयता का दर्शन भूल चूका,
अपनी संस्कृति के वर्चस्व को धर्मकर्म में तोल चूका,
ये भी सायद इतिहासकारों की रची कहानी है,
"महेश" आज "गो" खून से लथ-पथ मात्रभूमि अनजानी है,
गो माता की आँखों से गिरता निर्मम पानी है,.

अब और क्या देखना बाकी है...
"Mahesh Yadav"

Monday, October 11, 2010

एक मजदूर.....

"गरीबी में सास लेता, फिर अपने दिल को भाप लेता,
कभी दिन को मैं सोता, कभी रातों को जाग लेता,
गरीबी बड़ी जहरीली नागिन है साहब,
आदमी के जिस्म तो क्या ये रूह को भी डस लेती है"

एक मजदूर.....
न जात न पात न कोई "धर्म" न "मज़हब",
न कोई किसी से द्वेष न कोई परिवेश,
न कोई अहम सिर्फ पेट भरने का वहम,
नम्रता से झुका सर,हर बात में जी हजूर,
एक मजदूर...........

नक्शे-ऐ गुलिस्तान को स्वरुप में ढाल देना,
"क़ुतुबमीनार" से "ताजमहल" तक एक पत्थर से नाम देना,
बहुतों के महल बुलंद है,इनकी बुनियाद में इनके झोपड़े दबे हुए है,
के सायद आज भी,इनके हाथ कटे पड़े है,
माथे से टपकता पसीना,आंखे नम पड़ी है,
उसके चहरे पे ना जा, रूह में दीखता है नूर,

एक मजदूर.............

बुलंदियों के परबत पर बैठे,कैसे देखोगे इन्हें,
तुम्हारा ये मजदूर घाटी में खड़ा है,
हालात बदल सकते हो तुम इनके,
इनमे ना सही तुममे तो सुखार्ब जड़ा है,
तुमसे इनाम नहीं मागा इन्होने,दिहाड़ी मांगी है साहब,
तुम्हारा मिजाज़ फिर क्यों उखड़ा पड़ा है,
दिहाड़ी दो न साहब, क्यों बनते हो इतने क्रूर,

एक मजदूर.....................

अब बस मेरा ज़मीर रो रहा है साहब,
मैं तुमसे ज्यादा महनतकस हूँ,
फिर भी मेरे पास रोटी न कपडा न मकान है साहब,
अछी महक से महकती है तुम्हारी रसोई,
मेरा तो चूल्हा भी ठंडा पड़ा है ,
"महेश" पत्थर से तेरा कांच का महल तोड़ देता,
मगर मेरा हाथ पेट ने पकड़ा हुआ है,
इसीलिए सर झुकाए खड़ा हूँ,
कुछ तो रहम करो हूजूर,

एक मजदूर.....................
"Mahesh Yadav"

Friday, October 1, 2010

"मंदिर" हो वहा या "मस्जिद" हो वहा,

"मंदिर-मस्जिद" के हवालो से निकले है हवा,
क्यों उसे दुआ मिले मिल रही है बददुआ,
सयंम की कमान मैंने बाधे रखी,
फिर भी दिलो का मैल कम न हुआ,
यू तो जले है पहले भी आशियाँ बहुत,
मगर आज उस मालिक के दर से भी निकला धुआ...
क्या ये जरूरी है के "मंदिर" हो वहा या "मस्जिद" हो वहा,
सायद अब इन्ही से जाना जाता है जहाँ,
कोन समझाए-कोन उन्हे ये बताये,
वो मालिक एक है और एक है ये जहाँ,
के "मंदिर-मस्जिद-गुरद्वारो" और "चर्च" में बटा हुआ ये जहा,
नदियाँ, झील-समंदर समझ गए सब,
मगर नहीं समझा इंसां...
अगर एक सवाल पूछे हमसे खुदा,
की मैंने पहले "धर्म" "कर्म" बनाये या बनाया तुझे अ इंसां,
की तुझे इस जहाँ में लाने की है ये सजा,
मुझे चार हिस्सों में बाँट दिया,
मैने कभी इस मात्रभूमि को चूमा था,
इसकी रज में लोट कर मैं हुआ बड़ा,
मैने कभी किसी में कोई फर्क नहीं समझा,
फिर भी तुमने इस जहा में मुझको बाट दिया...
लड़ते हो बेगैरत बुजदिलो की तरह,
अरे मैं तो द्वापर सत त्रेता में भी एक ही था,
इस कलयुग में फिर तुमने मुझको बाँट दिया,
संसकिरती को पीछे छोड़ा और सभ्यताओं का नास किया,
अ इंसां क्यों विनास की रहा में तुने कदम रखा,
फिर मैं आऊं ध्वजा दिखाऊ, के उन वीरो को तुमने भुला दिया,
देश प्रेम और भाई चारे का नाम नहीं,
अ मुर्ख तुने "भगवान्" को भी दूजा बना दिया,
के आँखों में बंद कर उजियारे को,
अंधियारे को पल में हटा,
फिर दिल से बोल तू एक था एक है एक ही रहेगा सदा.....

Tuesday, September 28, 2010

बचपन कभी भुलाया नहीं मैने तुम्हे..

बचपन कभी भुलाया नहीं मैने तुम्हे..
अपनी यादों में कभी भी सुलाया नहीं मैने तुम्हे..

के सायद मैं कभी सोया ही नहीं,
मुझे याद क्यों न हो,स्कूल से भाग कर क्रिकेट खेलने जाना,
फिर पिटाई के डर मास्टर को झूट बोल पेट में दर्द बताना..

`बहुत दिन हुए नहिं देखा दस पैसे का सिक्का...
स्कूल के दरवाज़े पर खड़े होकर चोहान के
गोल्गपे नहीं खाए,

बहुत दिन हुए आंगन के चूल्हे पर हाथ तापे..
याद नहीं आखरी बार कब डरे थे अँधेरे से...
कब झूले थे आखरी बार, पेड़ की डाली पर...
कब छोडा था चाँद का पीछा करना..

याद नहीं, कब कह दिया रहड़ी वाले
भैया की गोला गिरी को अलविदा..!!

कहाँ छुट गए कांच की चूडियों के टुकड़े,
माचिस की डिबिया की तास, चिकने पत्थरों की जागीर..
कब सुना था आखरी बार, स्कूल की घंटी का मीठा सुर...

बहुत दिन हुए नहीं खाई माँ की डाट...
...बसता पटक के भाग गया था खेलने...
नहीं लौटा है अब तक शाम ढलने को है,
सच नहीं लोटा मेरा बचपन जिन्दगी अपने सफ़र पर चलने को है...
के मेरी जिन्दगी के दिन हैं कितने बचे......

बचपन कभी भुलाया नहीं मैने तुम्हे..
अपनी यादों में कभी भी सुलाया नहीं मैने तुम्हे.. (Mahesh Yadav)

Sunday, September 12, 2010

मैंने कभी सोचा नहीं

मैंने कभी सोचा नहीं, के ये दोर भी आयेंगे,
के बदनाम होंगे बददुआये मिलेंगी,
और सिर्फ मेरी झोली में कांटे नज़र आएँगे !!

मैंने तो चाहा था फूलों सा चमन,
नसीबा भी ऐसा जैसे खिलता कमल,
नहीं थी खबर के मिलेंगे यू कफ़न,
के गुस्ताखियों के खेल यू खेले जायेंगे !
के मेरे सपनो के खिलोने सारे मेले में छुट जायेंगे !!

मैंने कभी सोचा नहीं..................

के सायद मैंने अपने आपको पत्थर बना लिया था,
के तकदीर ने लड़ते-२ जीना सिखा दिया था,
तभी तो मेरे जख्म खुले के खुले रह गए,
जो गैरों से मिले वो तो सी गए,
जो अपनों से मिले वो जख्म हरे रह गए,
के मुझे क्या पता था मुक्कदर से इस कदर टकरायेंगे !
के रुस्वाइयां मिलेंगी, और हम अकेले रह जायेंगे !!

मैंने कभी सोचा नहीं..................

मैंने हर गम पीने की कोशिश की,
मैंने हर जख्म सिने की कोशिश की,
मैं हर दोर में करता रहा खुद से बेवफाई,
मगर मेरा विस्वास मेरी सच्चाई काम न आई,
सायद उस खुदा को मंज़ूर न था के मुझे मिलनी ही थी रुसवाई,
के मैं इतना बुरा भी ना था की यू ठुकरा दिए जायेंगे !
के इस नीले गगन के नीचे मेरे लिए तनहाइयों के बादल नज़र आयेंगे !!

मैंने कभी सोचा नहीं.................

जब तक मैं समझ पाता दुनिया के फैसले,
मेरी आँखों पे पड़े थे यारो के काफिले,
विस्वास बहुत था मुझे अपनों पर,
मगर वो भी मुझे गैरों की भीड़ में खड़े मिले,
के सायद अब लोग सोह्रतों से पहचाने जायेंगे !
मुझ जैसे लोग भीड़ में अकेले नज़र आयेंगे !!

मैंने कभी सोचा नहीं..............

Wednesday, September 8, 2010

मेरी मोहब्बत के किस्से जब मेरी आँखों से बयां होने लगे

मेरी मोहब्बत के किस्से जब मेरी आँखों से बयां होने लगे,
बाते हुई चर्चे हुये फिर हर गली में बदनाम हम होने लगे,
सायद जमाने वालो को नागवार गुजरी ये बाते,
के आज वक़्त ये है, हम जुदा है,
के बस यादों के गहरे साए में अपने आप को छुपाने लगे,

के सायद मेरी दीवानगी में कुछ गम छुपे थे,
जो की अब रह-रह के मेरी आँखों से बहने लगे,

लहरों की तरह चंचल मैं उन्मुक्त हवाओ से किनारे दर किनारे चलता रहा,
गलत मेरा विस्वास हुआ किनारे भी अब टूटने लगे,सहारे भी अब छुटने लगे,

के मैं अपनी अक्लमंदी पर विचारो पर भरोसा करता रहा,
के मेरे विचार भी अब मैखाने में दम तोडने लगे,

मुझे विस्वास था उस दुनिया के मालिक पर,
के वक़्त दर वक़्त उस पर से भी विस्वास टूटने लगे,

मुझे गम नहीं की मौत ही मेरी मंजिल सही,
के बस अब तो उनकी यादों में ये सांस भी छुटने लगे,
के अब 'महेश' तेरी जीस्त के सब किनारे टूटने लगे!!

Friday, August 20, 2010

हम किसी की बात का अक्सर गिला करते नहीं

हम किसी की बात का अक्सर गिला करते नहीं,
लोग ही कुछ इस तरह के हैं हया करते नहीं!

खुद नहीं आता किसी के साथ मिलकर बैठना,
और फिर लोगो से कहते वो वफा करते नहीं!

ओ मुसाफिर! गिर गया तो क्या हुआ उठ फिर संभल,
इस कदर मंजिल के दीवाने गिरा करते नहीं!

वो बसर डरते ही रहेंगे अपनी ही परछाई से,
जो कभी दो चार मुस्किल से हुआ करते नहीं!

शौक जिनके दिल में हैं, खुद भी तो एक मंजिल हैं वो,
वो किसी की रहा का कांटा बना करते नहीं!

दोस्तों को नाज़ क्यों न हो "महेश" की दोस्ती पर,
हम तो अपने दुसमन का भी बुरा करते नहीं!!

Tuesday, August 17, 2010

.....कुछ बीते लम्हे.....

कुछ बीते लम्हे जब मुझे याद आते हैं !
तो वो मेरे जहन को सुलगा जाते हैं !!
वक़्त दर-बदर आगे निकलता जाता हैं !
और पीछे किस्से रह जाते हैं !!

के जिन्दगी जैसे उन लम्हों में आज भी कट रही है,
के जैसे रात की चादर, सुबह की धुप से छट रही हैं,
नाउम्मीदी के साए का, फिर वो दोर याद आता है,
के मुझे यकीं ना हो फिर मेरे सपने अधूरे रह जाते हैं!

कुछ बीते लम्हे...............


के मैं चल पड़ता हूँ जाने किस सफ़र पर,
के कभी चलता हूँ रुक जाता हूँ, मैं खुद को रोक नहीं पाता हूँ,
के नाकामी मेरे पीछे भाग रही हो,
के बुजदिली मेरी तरफ झांक रही हो,
के फिर अजब सी बेचैनी के मंज़र मेरे सिने में उतरते जाते हैं!

कुछ बीते लम्हे.................

के जिन्दगी जैसे सपनो का रेला हैं,
और आदमी हर दोर में फिर अकेला है,
मैं फिर इस अकेलपन से घबराता हूँ,
मैं जैसे अपने पथ को भूलता जाता हूँ,
के इस सूनेपन से मेरे साए भी घबराते हैं!!

कुछ बीते लम्हे.....................

मैं खामोसी में सन्नाटे की आहट को जब सुनता हूँ,
फिर अपने जहन में जाने कितने ख्वाबो को मैं बुनता हूँ,
ख्वाबो की हकीक़त यादों में रह जाती है,
पलके उठाते ही फिर रात अंधियारी नज़र आती हैं,
फिर ख्वाबो के सारे किस्से आँखों से बह जाते हैं!!

कुछ बीते लम्हे.....................

अपने भी अब दूर हुए,
फिर सपने भी अब सब चूर हुए,
क्यों अपनों की महफिल में आज इतने मजबूर हुए,
सायद मुझमे ऐसी कोई बात नहीं,
के आज कोई मेरे साथ नहीं,
के आज मेरे अपने भी मुझसे कतराते हैं!!

कुछ बीते लम्हे....................

ये सब मेरी कविता की परछाई हैं

अपने अधरों पर ले मैंने एक कविता नई बनाई हैं,
के टूटे हुए छंद लिए ये सब मेरी कविता की परछाई हैं!!

नहीं खबर किसी को हर जगह आपा धापी छाई है,
यूही बेखबर सब हर स्वर में एक उदासी छाई है,
के बेसुध अंगारों पर एक लहर उमड़ती आई हैं,
के आज गंगा माँ भी कान्हा के घर आंसू बहाने आई हैं........

अपने अधरों पर ले मैंने, एक कविता नई बनायीं हैं,
के टूटे हुए छंद लिए ये सब, मेरी कविता की परछाई हैं!!

गौएँ बे सहारा अब इस धर पर बेहाल हुई,
ये सब देख मेरी आँखों ने बुँदे चंद बरसाई हैं,
औरो की होड़ में अपनी संस्कृति को पीछे छोड़ दिया,
ये क्या कम है आज संस्कृति नंगा बदन देख सरमाई है
देश भक्ति का नाम नहीं अब, मयखानों में धूम मची,
शायद महेश अब हवा पश्चिमी सभ्यता लाई है.............

अपने अधरों पर ले मैंने एक कविता नई बनाई हैं,
के टूटे हुए छंद लिए ये सब मेरी कविता की परछाई हैं!!

अब नेताओ के भासण है और मात्रभूमि अपनों के लहू से नहाई है,
इस मेरे जान वतन को, प्यारे चमन को जाने किसकी नज़र लग आई हैं,
गीता ज्ञान को भूल चुके सब, गन्दी महफ़िलो ने धूम मचाई हैं,
के शायद महेश ये सब समय का बदलाव ही हो,
के मंदिर में भगवान् की मूरत सुनी नज़र जो आई हैं...........

अपने अधरों पर ले मैंने एक कविता नई बनाई हैं,
के टूटे हुए छंद लिए ये सब मेरी कविता की परछाई हैं!!

के मंदीर मस्जिद गुरद्वारे सुने पड़े है सारे,
के शायद धर्म-कर्म में राजनीती जो आड़े आई हैं,
के ये सब लिखते-२ मेरी आँखे भर आई हैं,
व्याकुल मन से मैंने ये कविता नई बनाई हैं,
फिर कही से "हिंद जय हिंद" के नारों की,
एक भीनी सी खुसबू आई है,
के आज फिर सहिदो की याद मुझे अपनी और खीच लाई हैं..............

अपने अधरों पर ले मैंने एक कविता नई बनायीं हैं,
के टूटे हुए छंद लिए ये सब मेरी कविता की परछाई हैं!!

एक सैनिक



एक सैनिक
क्या खोया-क्या पाया जग में, आओ तुम्हे बतलाते हैं,
फिर इस व्याकुल मन से उस सैनिक की गाथा तुम्हे सुनाते हैं!!

घर का आँगन सुना पड़ा है,
घर चूल्हे में आग नहीं, अब धुआं खड़ा है,
हर कोने में सन्नाटा रवां है,
दो आंखे टकटकी लगाये दरवाजे पर झाके है,
के बस अब तो यादों के समंदर आँखों से बह जाते हैं,

एक सैनिक.........

राखी का प्यारा सा बंधन, बहन रहा तुम्हारी देख रही,
ऊँची चोबरी के मुंडयारी पर,बीवी आँखे टेक रही,
माँ के आंसू रुकते नहीं अब, बाप का कंधा टूट गया,
उम्मीदों के साए में अब तो ये सब आस लगाते है.....

एक सैनिक.........

घर आँगन गलियां और नुक्कड़ अब तुम्हे पुकारे है,
कब आओगे-कब लोटोगे, जर-जर मन सुने सारे है,
खाने को घर अनाज नहीं अब , महंगाई बढती जाती है,
पेड़ो के पते सुख गए अब, हवा भी महगाई लाती है,
अपनों को दूर छोड़ के वो अपना फ़र्ज़ निभाते है.....

एक सैनिक.........

चिट्टी में पढ़ हाल तुम्हारा मैंने सासों को रोक लिया,
सहिदो के इस मेले में फिर, एक नाम तुम्हारा जोड़ दिया,
के अब तो अहदे वतन की खुसबू इस चिट्टी से आती हैं,
के तुम्हारे बदन की खुसबू इस चिट्टी से आती हैं,
के मात्रभूमि का कर क़र्ज़ अदा वो स्वर्ग को जाते हैं....

एक सैनिक.........

Friday, August 13, 2010

देश तिरंगा स्वदेश तिरंगा,
मेरी जान तिरंगा, मेरी आन तिरंगा,
और मेरा स्वाभिमान तिरंगा!!




शर्मिंदा हूँ अपने आप से,
मेरा हिन्दुस्तान रो रहा है,
के मैं कुछ न कर सका,
दो शब्द लिखने के सिवा!!

आज देश को आजाद हुए ६४ वर्ष हो चुके है! लेकिन आज भी हम उसी मोड़ पर खड़े है!जब हमारे पूर्वजो ने आजादी में नए जीवन की कामना की थी!
यू कहे तो जीवन निरर्थक है हम खुद अपने ही बनाए चक्र्व्हू मैं फसते जा रहे है! ६४ वर्ष हो गए हमें आजाद हुए! ६४ वर्षो में हमने तर्रकी की मगर उसका कोई फायदा नहीं, इस देश में भ्रस्टाचार इतना फ़ैल चूका है! जैसे “प्रदुषण या महामारी”! नेता सत्ता में आने के लिए एक दुसरे की टाँगे खीचने में लगे रहते हैं! उन्होने सत्ता में आने के लिए राजनीती को अखाड़ा बना रखा हैं! आम आदमी की जिन्दगी दब कर रह गयी है हमारा देश कर्जे में डूबा पड़ा हैं, बहुत से लोगो को दो वक़्त का खाना नसीब नहीं होता! हमारे देश में लगभग ६०% लोग बे रोज़गार हैं, नेता इतनी बड़ी-२ बाते करते हैं उन्होंने करना कुछ नहीं! बस पैसा खाने का धंधा बना रखा हैं बगैर नमक मिर्च के! गरीबी के कारन छोटे -२ बचे सडको पर भीख मांगते फिरते है! गउएँ सडको पर पन्नी-कागज, कूड़ा - करकट खाती डोलती है! उन्हे काटा जाता है कितना बड़ा पाप है, वैसे तो किसी को अधिकार नहीं किसी की हत्या करने का- फिर क्यों ऐसा हो रहा हैं! इन सब पर कब रोक लगेगी!
विभ्हीं देशो ने कितनी तर्रक्की कर ली है हम अभी भी उनसे ५० वर्ष पिछड़े हैं! इसका कारण अपने देश में भ्रस्टाचार का होना!
आजादी के वक़्त सुभाष चन्द्र बोस जी ने कहा था "तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा"
और आज के नेता तो ये छाती हैं तुम मुझे कुर्सी दो मैं तुम्हे गरीबी बेरोजगारी, और भ्रस्ट्ता दूंगा"
ये देश उस पैड की तरह है जो अन्दर से खोकला हो चूका है! नौकरियों के लिए घूस-दलाली छिक कर होती हैं! जो अच्छा अनुभवी है जिसके पास पैसे नहीं हैं वह एग्जाम दे-दे कर मर जाएगा! होगा कुछ नहीं, अगर कोई उस सिस्टम के खिलाफ कोई आवाज उठाता है तो उसका मुह बंद कर दिया जाता हैं या तो पैसा या घूसा!!
हम बड़े गर्व से कहते हैं "मेरा भारत महान" मगर भैया अभी भी १०० में से निनाय्न्बे बेईमान" इस देश में ७०% नोजवान, यानी ३५ वर्ष की आयु से कम के लोग! अगर उनसे पुचा जाए की आपका लक्ष्य क्या है तो कोई कहता है डॉक्टर बनुगा, कोई कहता है इंजिनियर, सबकी आपनी अपनी सोच है कोई ये नहीं कहता की कोई ये नहीं कहता की मैं देश के लिए जिऊंगा और अच्छा नागरिक बनुगा!
इसी लिए तो देश इतना पिछड़ा हुआ! काश फिर से इस धरती पर वो राजगुरु, सुखदेव भक्तसिंग आ जाए! जो देश के लिए और देश के लिए मर मिटे!!! सुभाष चन्द्र जैसे नेता जो देश की आन के लिए कुर्बान हो गए! काश वो आज भी हमारे साथ होते, उन्हे याद करके आँखों में प्यार का सागर उमड़ आता हैं!
आज हर इंसान अपना दाव खेलने में लगा है सोचता नही की वक़्त की जो मार लग रही है
उसका अंजाम क्या होगा! अभी कुछ दिनों की बात है बोम्बे में ब्लास्ट हुए इसी तरह के ब्लास्ट
देश के जाने कितने कोने में हो चुके है! सैंकड़ो की जाने जा चुकी है सैंकड़ो अपनी जिन्दगी और मौत के बिच लड़ रहे हैं! "एक तो महगाई की मार, ऊपर से आतंकियों के हथियार"
“हम कहते है वन्दे मातरम पकिस्तान जैसा देश कहता है वन्दे बेशरम, बे करम”
जब तक हम एक जूट नहीं होंगे सभी को एक सामान नहीं समझेंगे तब तक कुछ नहीं होगा!
हमे एक होना होगा एकता में सबसे बड़ी सकती है! जात-पात भेद-भाव के खोखली नीतियों से ऊपर उठकर आगे आना होगा!
अगर इसी तरह चलता रहा तो पाकिस्तान जैसा देश अपने देश में इतनी गंद भर देगा! अब वक़्त भासण देने का नहीं एक जुट होने का है! हम अब भी होंस में नहीं आये तो कब ?? अब जवाब बातो से नहीं, लातों से देना होगा!


“दम घुट जाएगा ,
वक़्त लोट के फिर नहीं आएगा,
के तू संभल अ हिन्दुस्तान के नौजवान,
अब तो सीना तान के तू सामने आ,
के तेरे हाथो से फिर भारत माँ का दीप जल जाएगा,
अमन और शांति का तिरंगा फिर फराया जाएगा!!!”

सुनिए घर घर की कहानी,
महेश की जुबानी,
इस देश में है कितनी बेईमानी,
दोस्ती की बात न करो,
करते है यहाँ सब दुश्मनी,
फिर भी कहते है हम हिन्दुस्तानी!!
नेता कहते है सुनो मेरी जुबानी,
मैं हु आप सब का सैलानी,
मुझे बनाओ अपना नेता,
मैं हूँ तुम्हारा भाई हिन्दुस्तानी,
बनते ही नेता करते है अपनी मनमानी!!

इस लिए तो मेरा जमीर रो रहा है,
मेरे वतन की बस्तियों में गलत कुछ और हो रहा है,
बदलना होगा सबको,वर्ना लुट जाएगा सब कुछ,
के आज अपना मुक्कदर अपने हाथो खुद ही रो रहा है!!

इस देश में भ्रस्ट्ता जड़ से मिटानी होगी,
इस देश में आजादी फिर से लानी होगी,
भ्रसटाचारी को बताना होगा,
अब नहीं चलेगी तुम्हारी मन मानी,
जाग उठा हर हिन्दुस्तानी,
हम लायेंगे अमन और शान्ति,
अब नहीं चलेगी कोई बेईमानी,
बढ़ चुकी दिल में बेचैनी,
अब नहीं रही किसी से दुश्मनी,
कर ली है हमने सब से दोस्ती,
इस लिए हम गर्व से कहते है,
हम है हिन्दुस्तानी,
यह है मेरे देश की कहानी
महेश की जुबानी....
• अगर ये संकल्प मिलकर करे तो कुछ भी नामुमकिन नहीं.......

वक़्त भी लाख लगाएगा पहरा,
तेरी धडकनों को रोकेगा ना होने देगा सवेरा,
मगर तू होंसला न हारना,
जब तक मंजिल न मिले तुझे,
क्योंकि उस दिन वक़्त भी गुलाम बन जाएगा तेरा!!

कुछ पाना है तो साथ मिलकर चलो,
कुछ बोलने ने से पहले कदम उठ जाएगा तेरा,
जब निकल पड़ेंगे एक साथ,
न होगी मुस्किल कोई,
के फिर होगी तेरी हर शाम,
होगा हर सवेरा तेरा!!!!
जय हिंद, जय भारत....

Wednesday, August 11, 2010

..मेरी हर नब्ज़ हर सांस मैं रवां जिन्दगी का काफिला....

मेरी हर नब्ज़ हर सांस मैं रवां जिन्दगी का काफिला!
के दिल की इस गली से चला फिर लिखने का सिलसिला,
के यू तो मंजिले बहुत थी मगर कारवां न मिला,
की एक खुशी की तलाश में फिर किया लिखने का फैसला!

अपनों को समझ पाने की खता है,
या अपनों को रुलाने की ख़ता है,
सच कहू अब इस दिल मैं बस धुआ ही धुआं है!!

किया क्या मैने गुनाह है,
जो दर्द मुझको मिला है,
अब न कोई सिकवा गिला है,
जो भी मिला अपनों से मिला है!!

जर्रा जर्रा मजहब में बटा है,
ना कोई मंजिल है मेरी
ना कोई सपना है,
जिन्दगी ने भी जैसे रास्ता अपना चुन लिया है!!!

Thursday, August 5, 2010

हम रहे या ना रहे, वतन मेरा जिन्दा रहे!!

वतन ही वतन अब राहों में हैं,
वतन ही वतन अब निगाहों में हैं,
वतन के सिवा और कुछ भी नहीं,
के वतन की ही हम बाहों में हैं,
के कलम ने आगाज़ किया की लिख ले कुछ ऐसा,
के आज फिर हम खुदा की पनाहों में हैं!!

हम रहे या ना रहे,
वतन मेरा जिन्दा रहे!!

कुछ हवा यू चली और बोली,
की वक़्त है फिर वही ,
आज़ादी की सांस लेता,
आसमा और जमीं,
देख नन्हे पैरों में जंजीरे नहीं,
ढलते पथ की जो धुल थी वो छट चली,
अंधियारे में चले थे लेके दिल में विस्वास ये,
एक दिन तो बदलेगा आसमा,
होगी अपनी सारी ये जमी,
के खुद ब खुद निकलने लगी बुझे दिए से रौशनी,
के फिर वही है आसमा फिर वही है जमीं,
वक़्त के हाथो ना लुटने देंगे तोड़ेंगे ज़ंजीरो को,
वतन के लिए बदल देंगे तकदीरों को,
के जब तक सांस जिस्म में है,
वतन के लिए लड़ते रहे!!

हम रहे या ना रहे,
वतन मेरा जिन्दा रहे........

ये जो जिन्दगी है एक पहेली है

सोचू तो क्या है ये कलम,
तिनका-२ टुकड़ा-२ जोड़कर
लिख देती है खुसी और गम,
पिरो देती है आँखों में अश्रुओं के मोती ,
बना के अपना सनम ॥

ये जो जिन्दगी है एक पहेली है,
कभी साँसों की दुश्मन कभी सहेली है ॥

साँसों का क्या ये आनी और जानी है,
आज बचपन कल की ये जवानी है,
साथ छोड़ के जाते है जब लोग दिलवाले,
बचना क्या है फिर जाने वालों की याद आनी है ॥

ये जो जिन्दगी है एक पहेली है ॥


दुनिया को छोड़ कर जाने वाले,
रोये हम और ज़माने वाले,
ये है उम्मीद के तू वापस आ जाए,
वर्ना यादों के सहारे आँखों में पानी है ॥

ये जो जिन्दगी है एक पहेली है ॥


सुना सुना है ये जहाँ अब,
के सुनी दुनिया लगे नीरस जीवन,
पल में टूटे सब रिश्ते टुटा ये मन,
एक ना एक दिन तो जिस्म से जान जुदा होनी है ॥

ये जो जिन्दगी है एक पहेली है ॥ 

तन्हा बैठे हुए कुछ ख्याल हो आया

तन्हा बैठे हुए कुछ ख्याल हो आया,
याद किया कुछ बीते लम्हों को,
के आँखों मैं नीर उतर आया,
कलम चलने लगी यादों के साथ,
के फिर किसी का इंतज़ार हो आया!

मेरा बचपन बीता के जवानी भी चली गयी,
तेरी रहमत से सनम ये जिंदगानी भी चली गयी,
लोग अक्सर गिला करते हैं उन बातों का,
जिसमें रस्में कसमें और बेमानी भी चली गयी!!

शाम होते होते इंतजार हो आया उनका ,
याद करते-करते ये रूहानी भी चली गयी,
के दिल तो सीसा है इसको टूट जाने दे,
जो ज़ख़्म लगने थे वो परेशानी भी चली गयी!!

के रिश्तों की बात कहाँ आज हम है ख्फां
के सनम तेरे रंजों गम मैं ये कहानी भी चली गयी,
अक्ष आँखों मैं लेके याद करते है उन्हें ,
के रुठते मानते धीरे-२ ये दीवानी भी चली गयी!!!!

Friday, July 30, 2010

मेरा दर्द मेरी उड़ान

:::::नम आँखों को लिए दिल को मैंने यू समझाया,
के हाथ में आई कलम और कुछ लिखने का ख़याल आया:::::

:: नम हो आई आँखे मेरी,
देखि जब जिन्दगी से जंग तेरी,
तन पर मन पर मैल जमा
अन्धयारी नगरी में जैसे बिन दिए तू अकेला खड़ा,
किलकारी निकली जब माँ के दुलारे की,
तो मेरा जमीर भी रो पड़ा ::

:: के कभी प्यास बुझी नहीं जिन आँखों की,
जिन्होंने अभी से तिरना सिख लिया,
क्यों जिन्दगी में आये क्या मिला और क्या पाए,
किस्मत ऐसी की बंज़र जमीं पर सुखा पैड खड़ा ::

:: फिर देखा उगता सूरज होंसला मेरा भी बुलंद हुआ,
सूरज से आँखे मिलाकर कुछ निश्चय मैंने भी किया,
की जब तक जीत न जाऊं नहीं हटेगा पीछे पग ये मेरा,
कल की खबर न जानो आज जिन्दगी को पहचानो,
के सीर्स पर तो तू ही है खड़ा ::

अब जीत जाना ही मकसद है मेरा

जय हिंद जय भारत...

\\मैं एक हिन्दुस्तानी//

मैं एक हिन्दुस्तानी!
कर रहा फिर अपनी मनमानी!!

खड़ा चोराहे पे सोचता,
के कोन ये कुरीतियाँ बेचता
के कोन बहा रहा है नफरत के सैलाब,
के कोन कर रहा है इस चमन को बर्बाद,
के फिर है अजब सी मेरे मन में बेचैनी,

मैं एक हिन्दुस्तानी................

क्यों आज फिर अपनापन नज़र नहीं आता मुझे,
के हर तरफ ये कैसा शोर हो रहा है,
के सायद गन्दी महफ़िलो का विमोचन हर और हो रहा है,
के अब जीस्त के जीने के माँयने बदल चुके,
सायद मैंने जो देखा है वो आइने बदल चुके,
है अभी भी कुछ बातें अनजानी,

मैं एक हिन्दुस्तानी..................

बना रहे है देश आकृति वो
भूल चुके हैं अपनी संस्कृति जो,
के भूख खड़ी है हर दरवाजे पर,
गरीबी माथा चूमती छाजे पर,
बेच रहे है कुछ लोग अपने अभिमान को,
काट रहे है जात-पात में उस भगवान् को,
सनाटा लिए मौत खड़ी हर चौराहे पर,
के लिए बुलावा काल का आ जाये समसान को,
के लुट लिया सब, छुट लिया सब
के भूल गए अब सब बातें पुरानी.

मैं एक हिन्दुस्तानी...............

के राजनीति अब वर्चस्व आखाडा है,
मतलब और ढंग बदल चूका,
देश समाज अब मजहब मैं बट चूका,
देश हराओ कुर्शी जिताओ
ये नेताओ का नारा है,
मैं खड़ा यू सोचता करना क्या अब सबसे नयारा है,
मैं चाहता हूँ जो करना अडचने बहुत है आनी.

मैं एक हिन्दुस्तानी...................

अ खुद्दा तेरी इनायत हो हम पे,
दुआ मांगता मैं तुझसे ,
इसे फिर से वही भारत्वर्स नगरी बनाओ,
फिर से बाल रूप मैं इस धरती पर तुम आओ,
फिर कोई लीला कर इस चमन को फूलों से सजाओ,
बस इतनी आशा है दीदार तेरा हो जाए,
ये संसार तेरा हो जाये,
के चारो तरफ अमन और चैन हो,
के हर बुरे का अंत यहाँ हो जाए,
के ये सब कहते-२ “महेश” की आँखों मैं है पानी,
के भारत माँ की आन तुम्हे है बचानी..........


मैं एक हिन्दुस्तानी.....................

Wednesday, July 28, 2010

फिर आज देश अपना गर्दिस मैं है यारों

आज फिर कलम ने मुझे विस्वास दिया हैं,
कुछ जोड़कर कुछ तोड़कर
फिर अपने आपको खुदी में छोड़ कर
सारे ग़मों को लिख दिया है………….

नहीं है वक़्त आज आंधियो में रुक जाए कदम ,
नहीं है वक़्त आज के मंजिल से पीछे हट जाए कदम ,
लगी है बाजी अब के होंसले अब न होने देंगे कम ,
रुकना नहीं झुकना नहीं
फिर चाहे लहू की नदिया बहानी पडे ,
फिर चाहे सर कटाने पडे,
अब न पीछे हटेंगे कदम.
जब तक मंजिल को न पा जाए हम .

हर तरफ ग़मों का मंज़र जो छाया है,
गुल गुलाब न रहा के लाल बन आया है,
ग़मों का काफिला यू इस कदर बढ़ता चला गया ,
के मेरे वतन पे आज आँधियों का साया है……..

ज़र्रा ज़र्रा घिरा है आंधियो के बोज से ,
के हर तरफ मौत का तांडव छाया है,
हाल ये है बसर करना मुस्किल हुआ ,
के आज मेरा वतन आंसुओं में नहाया है……..

कही अंगारे बरसती आग है,कही तूफां घनेरे है,
कही लुट रही है संस्कृति, कही आंसुओं के मंज़र गहरे है,
कही होड़ है अपने आप का वर्चस्व बढ़ाने की,
लगी है आज बाजी देस अपना बाचंने की,
टूटे ही सपनो को आज सजाने की,
फिर आज देश अपना गर्दिस मैं है यारों ,
इसलिए अपने आपको एक बनाना है,
ज़रे-2 मैं अमन और चैन फैलाना है ,
अपनी मात्रभूमि को फिर आज अपना बनाना है…………………

प्यालो में मधुशाला

कभी दिल रंगी बहारो में,
कभी दिल रंगी पुहारो में,
कभी बहते पानी की कल कल से,
कभी गिरते झरनों की छल छल से,
कभी र्रून झुन -२ करती प्यालो में मधुशाला,
फिर वक़्त नहीं अब अपने आपको समझाने का,
के आज खूब झूमी है मदमस्त हाला..................

Tuesday, July 27, 2010

मैं जाने किस कशमकश मैं हूँ !

मैं जाने किस कशमकश मैं हूँ ।

और फिर एक बे-अदब बे-सबब महफ़िल का दोर है
झुकी हुई है वादियाँ, समां भी कुछ और है
धडकने गुम है सांसे नम है
फिर कुछ अनकहा अनसुना सा मेरे मनं मैं है
फिर न आज मैं अपने बस मैं हूँ ॥

मैं जाने किस कशमकश मे हूँ ॥

मेरी धडकने कुछ इस तरह जल रही
के तनहाइयों के सिवा और कुछ नहीं
अब मेरी जिन्दगी
दूरियां इस कदर बढ़ रही,
के जैसे न मिले हो हम कभी
जर्रा-जर्रा तूफ़ान का रेला नज़र आने लगा है
तू पास होके मुझसे दूर जाने लगा है
के मैं आज फिर गैरों की महफ़िल मैं हूँ ॥
मैं जाने किस कशमकश मैं हूँ ॥ 

Monday, July 26, 2010

॥ अधूरी नज़्मे ॥

1)
मेरी नाकामी मुझ पे हस्ती और सहारे छुट गए.
अब मेरी ज़ीस्त के सब किनारे टूट गए,
हम जला के चिराग बाम पर बैठे रहे,
पर जलने वाले सब चिराग हमसे रूठ गए ||

2)
जो कभी ख़त्म ना हो
ये महफिलों के दोर यूहीं चलतें रहे
जीस्त जवानी और जान के फैंसले
फिर अपने लहू से धुलते रहे
हो गैर मुमकिन अगर जिन्दगी लुटानी पड़े
की गहराइयों के समुंदर फिर पलते रहे ||

3)
मेरी मौत पे रोये वो जो गैर हो
मुझे कंधा वो दे जिनसे बैर हो
सुकून मिलेगा मेरी रूह को,
वर्ना छोड़ देना मुझे उस जगह
जहाँ तनहाइयों का कहर हो ||

॥ मेरा भ्रम ॥

अपने साए की आहट से डर गया,
आज मैं फिर अपने आप की नज़रों में गिर गया॥

टुटा वहम मेरा सपनो से खेलता,
जैसे आज मैं अपने हाथो खुद ही मर गया॥

नहीं मुमकिन की वो हमें गैर न समझे,
के आज इस कदर पल भर में मंज़र बदल गया॥

जो भी लिखा था साए में उनके बैठ के,
जैसे के आज सब कुछ उनके साए में जल गया॥

क्यों करे मेरी वफाओं का ऐतबार वो,
करने लगे है मुझसे दरकिनार वो,
आज फिर दिल के कोने में धुआं भर गया॥ 

मेरी कविता की दर्द भरी कहानी

मेरी कविता की दर्द भरी कहानी!
मेरे दर्द में लिपटे मेरे शब्दों की जुबानी!!

कभी बचपन की अटखेलियाँ, कभी एक पल की जवानी,
कभी मध्यम होती साँसों की चुभन, कभी बुढ़ापे की निशानी,
कभी यादों का गहरा साया, फिर कभी अंधरे में अपने आपको पाया,
कभी करता मैय्खानो की सवारी, कभी फिर से रात अँधियारी
कभी मंदिर मस्जिद सिवाले जाना, फिर यह देख सबको होती हैरानी,

मेरे दर्द में लिपटी मेरे शब्दों की जुबानी,
मेरी कविता की दर्द भरी कहानी ॥

कभी झूट कभी सच, कभी अपने आपको दिया उसमे रच,
कभी बारिस की बूंदे और वो बूंदों की महक,
कभी मेरे यार का मिलना, और उसकी बातें रूहानी,
यही है मेरी कविता यही मेरी कहानी ॥

मेरी कविता की दर्द भरी कहानी ,
मेरे दर्द में लिपटे मेरे शब्दों की जुबानी ॥

कुछ सतब्ध कुछ निसब्द,
की जैसे बादलो में लिपटी, कुछ अनसुनी कुछ अनकही
हवाओ की तरह तेज, लताओं की तरह चंचल,
मेरे विस्वास में लिपटी, मेरी खामोस मधोस निशानी ॥

मेरी कविता की दर्द भरी कहानी ,
मेरे दर्द में लिपटे मेरे शब्दों की जुबानी ॥ 

मैं देश बचाना चाहता हूँ,

मैं देश जगाना चाहता हूँ,
मैं देश बचाना चाहता हूँ,

राजगुरु सुखदेव भगतसिंह मिट गए वतन के लिए,
मैं उन सहिदों की याद में आंसू बहाना चाहता हूँ,
मैं आज बताना चाहता हूँ, मैं आज जताना चाहता हूँ,
मैं वीरों की याद में खुद को भुलाना चाहता हूँ,

मैं देश बचाना चाहता हूँ,........................

मैं मंदिर मस्जिद गुरद्वारे और चर्च मैं एक गीत दोहराना चाहता हूँ,
मैं आपस मैं भाई चारे का गीत सिखाना चाहता हूँ
मैं इश्वर अल्लाह वाहेगुरु इशु को एक रूप में दिखाना चाहता हूँ,
मैं जात पात भेद भाव में लिपटी संस्कृति को आज बचाना चाहता हूँ,

मैं देश बचाना चाहता हूँ..........................

पड़ गयी जो बेड़िया वक़्त से नन्हे पैरो में,
मैं उन नन्हे पैरो को जन्नत पे चलाना चाहता हूँ,
मैं अपने देश को जन्नत बनाना चाहता हूँ,
उन्नति के मार्ग पे चलकर हम जीते होंसले,
मैं अपने देश को उन्नत बनाना चाहता हूँ,

मैं देश बचाना चाहता हूँ..........................

बैर और द्वेष से मिट गए थे जो निशाँ,
आँधियों की सेज पे लुट गए थे जो जहां,
आज मैं उन वादियों में प्यार जगाना चाहता हूँ,
मैं देश बचाना चाहता हूँ.....................

भूल चुके हैं जो अपनी संस्कृति को,
वो याद दिलाना चाहता हूँ,
मैं फिर से गीता ज्ञान दोहराना चाहता हूँ,
नफरत की आंधी मैं झुलसी हुई,
इंसानियत को आज जगाना चाहता हूँ,
मैं एक इंसान को इंसान बनाना चाहता हूँ,

मैं देश बचाना चाहता हूँ................................